यह पाती उन सभी के नाम है जो पचास की उम्र पार कर चुके हैं या उसके करीब पहुंच रहे हैं। यह पाती उन बीते दिनों की है, जब हम अपने बचपन के आँगन में खेलते थे, और दुनिया हमारे लिए उतनी ही मासूम और सरल थी जितनी हमारी ख्वाहिशें। जब हम 2024 में खड़े होकर 1960 के दशक की ओर देखते हैं, तो एक गहरी उदासी और मुस्कान दोनों ही दिल में उठती हैं। हम वो पीढ़ी हैं, जिसने अपने जीवन में इतने बदलाव देखे हैं जितने शायद आने वाली पीढ़ियां कभी न देख पाएंगी।
हम वो आखिरी पीढ़ी हैं जिन्होंने बैलगाड़ी की धीमी चाल से लेकर सुपरसोनिक जेट की उड़ान का रोमांच देखा। बैरंग ख़तों की मोहब्बत से लेकर लाइव चैटिंग की फुर्ती तक का सफर किया। वो खत जिनमें महीनों इंतजार के बाद जवाब आता था, और अब मोबाइल पर पलक झपकते ही जवाब मिल जाता है। हम वो लोग हैं जिन्होंने मिट्टी के घरों में परियों की कहानियां सुनी हैं और ज़मीन पर बैठकर खाना खाया है। आज की पीढ़ी के लिए ये बातें केवल कहानियों की तरह हैं, लेकिन हम जानते हैं कि उनमें कितनी सच्चाई और सरलता थी।
हमने वो शामें बिताईं जब मोहल्ले के मैदानों में गिल्ली-डंडा, खो-खो और कबड्डी खेलते थे। उस वक्त मोबाइल का कोई अस्तित्व नहीं था, सिर्फ़ दोस्त और उनके साथ खेलते समय का आनंद था। हम वो आखिरी पीढ़ी हैं जिन्होंने लालटेन की रोशनी में किताबें पढ़ीं और तख़्ती पर लिखाई की। हमारी बचपन की यादें उन दिनों से जुड़ी हैं जब हर चीज़ में मासूमियत थी, चाहे वो होमवर्क करते समय हो या दोस्तों के साथ खेलते समय।
याद है, वो चिट्ठियाँ जो कभी समय से नहीं पहुंचती थीं, लेकिन जब मिलतीं तो ऐसा लगता था मानो किसी ने दिल की गहराईयों से बातें की हों। आज के दौर में वो इंतजार और उसकी क़ीमत हम ही समझ सकते हैं, क्योंकि हमने उन लम्हों को जिया है। हमने बिजली के बिना गर्मी की दोपहरी और सर्द रातें काटी हैं, कूलर और एसी का तो दूर-दूर तक नाम भी नहीं था। लेकिन फिर भी हम खुश थे, क्योंकि हमारे पास रिश्तों की गर्माहट थी।
हम वो लोग हैं जिन्होंने स्कूल जाते समय खोपरे का तेल सिर पर लगाकर अपनी माँओं की ममता महसूस की है। हमने स्याही वाली दवात से हाथ, कपड़े, और कभी-कभी चेहरा भी रंगा है। तख़्ती धोने का मज़ा और उसमें छुपी मेहनत हमें आज की कागजी दुनिया से ज्यादा सुकून देती थी। टीचर्स की सख्तियाँ और घर आकर फिर से डांट खाने का अनुभव आज की पीढ़ी नहीं जानती, लेकिन वो मार भी हमें कुछ न कुछ सिखा गई।
हम वो लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास को अपने बचपन और युवावस्था में महसूस किया। वो मोहल्ले के बुज़ुर्ग, जिनकी इज्ज़त करना और उनसे डरना दोनों ही ज़रूरी थे। वो सफेद केनवास शूज जिन्हें खड़िया के पेस्ट से चमकाया जाता था, और वो गुड़ की चाय जो हर घूंट के साथ हमें सुकून देती थी। आज की मॉडर्न चाय की चुस्कियों में वो मिठास नहीं है जो उस गुड़ की चाय में होती थी।
हमने वो रातें बिताईं जब छत पर पानी छिड़ककर सफेद चादरें बिछाई जाती थीं और सब एक ही पंखे की हवा में सोते थे। वो रातें, जब सूरज की किरणें भी हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर नहीं कर पाती थीं। लेकिन अब वो दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछाई जातीं, और कूलर और एसी की ठंडी हवा के साथ हम एक बंद कमरे में सिमट गए हैं।
हम वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की सच्चाई और उनकी मिठास को जिया है। आज की पीढ़ी के लिए ये बातें सिर्फ़ कहानियों में बसी हैं, लेकिन हमने इन्हें अपनी ज़िंदगी में महसूस किया है। कोरोना काल में हमने देखा कि कैसे रिश्तेदार एक-दूसरे से डरते हुए दूर खड़े हो जाते थे, और अर्थियों को बिना कंधे के श्मशान जाते हुए देखा है। ये एक ऐसा मंजर था, जो हमारी पीढ़ी के अनुभव का एक और अनचाहा पहलू बन गया।
आज हम वो अनोखी पीढ़ी हैं, जिन्होंने अपने माँ-बाप की बातें मानीं, और अपने बच्चों की भी मान रहे हैं। हम वो लोग हैं, जिन्होंने शादी की पंगत में बैठकर खाना खाया और सब्जी देने वाले को “हिला के देना” कहकर अपनी मर्जी से खाना लिया। वो वक्त अब शायद लौटकर कभी न आए, लेकिन उसकी यादें हमेशा हमारे दिलों में बसी रहेंगी।
दोस्तों, इस पाती के साथ मैं आपको आपके बचपन की उन यादों में फिर से ले जाना चाहता हूँ। उन यादों को फिर से जिएं, उन रिश्तों की गर्माहट को महसूस करें, क्योंकि यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।
यह सफर सिर्फ़ यादों का नहीं, हमारी आत्मा का है।