भोपाल, 21 सितंबर । मध्य प्रदेश की राजधानी स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में आज (शनिवार) से हर्बल चिकित्सा पद्धित पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन प्रारंभ हो रहा है। इसका विषय “प्री लोकमंथन: गैर-संहिताबद्ध हर्बल चिकित्सा प्रणाली-संरक्षण, प्रचार और कार्ययोजना” है। इसका उद्देश्य हर्बल उपचार की मौखिक परंपरा पर प्रकाश डालना और इनको सुरक्षित रखने के तरीकों की चर्चा करना है। इसमें पद्म पुरस्कर विजेताओं सहित विषय विशेषज्ञ हर्बल चिकित्सा के भविष्य पर अपने विचार रखेंगे।
जनसम्पर्क अधिकारी अवनीश सोमकुवर ने बताया कि यह भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), प्रज्ञा प्रवाह, दत्तोपंत थेंगडी अनुसंधान संस्थान, एंथ्रोपोस इंडिया फाउंडेशन और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और संचार विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा संयुक्त आयोजन है। उन्होंने बताया कि “गैर-संहिताबद्ध” शब्द इस कार्यक्रम का केंद्रीय विषय है और सामान्यतः यह उन चिकित्सा प्रणालियों से संबंधित है जो उनके संहिताबद्ध पश्चिमी चिकित्सा की तुलना में कम मान्य हैं। विभिन्न चिकित्सा परंपराओं को एक जगह लाकर उनकी समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ को सरल कर संहिताबद्ध किया सकता है। बायोमेडिसिन के प्रभुत्व के बावजूद जो भारी मात्रा में वाणिज्यिकृत और पेशेवर हो गई है। ये गैर-संहिताबद्ध चिकित्सा प्रथाएं सदियों से जीवित हैं, जो विभिन्न वैश्विक समुदायों में सांस्कृतिक धरोहर और व्यावहारिक स्वास्थ्य लाभों के लिए उनकी महत्ता को दर्शाती हैं।
सम्मेलन में प्री-लोकमंथन में कुछ रणनीतियों पर चर्चा की जाएगी, ताकि हीलर्स के सामने आने वाली चुनौतियों को कम किया जा सके। कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों पर चर्चा होगी, जैसे हर्बल हीलर्स को उनकी योगदान और संसाधनों के लिए उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष व्यापार मानकों की स्थापना करनी चाहिए या नहीं।
पद्म पुरस्कार विजेताओं की भागीदारी
सम्मेलन में चार पद्मश्री पुरस्कार विजेता इस चर्चा को विशेष रूप देंगे। इनमें- पद्मश्री यानिंग जामो लेगो (अरुणाचल प्रदेश), पद्मश्री हेमचंद मांझी (छत्तीसगढ़), – पद्मश्री लाइश्रम नबाकिशोर सिंह (मणिपुर) और पद्मश्री लक्ष्मीकुट्टी अम्मा (केरल) शामिल हैं। इनकी भागीदारी पारंपरिक चिकित्सा प्रथाओं की समझ को और बढ़ाएगी और यह इन धरोहर-समृद्ध प्रणालियों की खोज के लिए एक राष्ट्रीय मंच प्रदान करेगी। इसके अलावा सम्मेलन में मुख्य रूप से प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय समन्वयक जे. नंदकुमार, प्रज्ञा प्रवाह के अध्यक्ष प्रो. ब्रिज किशोर कुठियाला, प्रोफेसर (डॉ.) केजी सुरेश आईजीआरएमएस के निदेशक डॉ. अमिताभ पांडे, एचके भारत की अध्यक्ष डॉ. सुनीता रेड्डी शामिल होंगी। सत्रों का संचालन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के विद्वान अपने विचार व्यक्त करेंगे।
मुख्य विषयों में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हर्बल चिकित्सा, जैव विविधता संरक्षण, पारंपरिक चिकित्सा से संबंधित स्वास्थ्य संचार, वाणिज्यीकरण का प्रभाव और जैव-उपद्रव का खतरा शामिल है। सम्मेलन हर्बल चिकित्सा से उपचार करने वालों के सामने आने वाली चुनौतियों, सरकारी सहयोग की कमी और बौद्धिक संपदा अधिकारों पर भी चर्चा होगी। इस मौके पर हर्बल हीलर्स कार्यशाला विशेष आकर्षण होगा। इस दौरान पारंपरिक उपचार विधियों का उपयोग करके रोगियों का इलाज किया जायेगा। हर्बल दवाओं के बारे में ज्ञान साझा किया जायेगा। यह छात्रों, शोधकर्ताओं और आम जनता सहित प्रतिभागियों को पारंपरिक हर्बल चिकित्सा प्रणालियों का प्रत्यक्ष अनुभव कराएगा।