
अल्केश झंवर,
श्रावण मास, अमावस्या का दिवस और प्रातः काल माहेश्वरी धर्मशाला में श्री पार्थेश्वर चिंतामणि महादेव पूजन का अनूठा आध्यात्मिक कार्यक्रम दिव्य स्वरूप में श्री माहेश्वरी मित्र मण्डल, खण्डवा द्वारा आयोजित किया गया ।
शिवपुराण की विश्वेश्वर संहिता के १९ वे अध्याय में कहा गया है किजिस प्रकार नदियों में गंगा,देवो में महादेव,मंत्रों में ओंकार श्रेष्ठ है उसी प्रकार लिंग पूजन में पार्थिव लिंग पूजन सर्वश्रेष्ठ है, मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने लंका पर कूच करने के पहले भगवान शिव की पार्थिव पूजा की थी, मान्यता है कि कलयुग में भगवान शिव का पार्थिव पूजन कूष्माण्ड ऋषि के पुत्र मंडप ने किया था जिसके बाद से अभी तक शिव कृपा बरसाने वाली पार्थिव पूजन की परंपरा चली आ रही है।
माहेश्वरी मित्र मण्डल द्वारा संचालित इस अद्भुत आध्यात्मिक कार्यक्रम की तैयारियां लगभग ७२ घंटे पूर्व से पूरी निष्ठा और लगन से की गयी थी जिसकी गवाही पूजन में बैठे प्रत्येक जोड़े के सामने रखे गए ७० प्रकार के पूजन सामग्रीयो,द्रव्यो और पुष्पों के रुप में परिलक्षित हो रहे थे।
मुख्य पंडित और सहायक पंडितों की टीम द्वारा पार्थिव शिवलिंग पूजन को पूर्ण शास्त्र सम्मत विधि विधान से सम्पन्न करवाना भी प्रशंसनीय ही नहीं अपितु स्तुत्य कर्म था। मुख्य पंडित जी द्वारा श्री गणेश अथर्वशीर्ष, श्री दुर्गा सप्तशती के सप्तश्लोकी पाठ,अर्गला स्तोत्र,कीलकमंत्र,देवी कवच,सम्पुट मंत्र और श्री शिव महिम्न स्तोत्र कि सस्वर पाठ,,, आत्मिक आनंद प्राप्त हुआ, पंडित जी की संस्कृत भाषा में प्रवीणता प्रत्यक्ष प्रमाणित प्रतीत हो रही थी।
फलाहार और भोजन प्रसादी का समायोजन,जायका और व्यवस्था सभी श्रेष्ठतम थी।
माहेश्वरी मित्र मण्डल के सेवाभावी सदस्यों की जितनी प्रशंसा की जाए वह कम ही होगी क्योंकि निर्विकार भाव से श्रद्धायुक्त और अहंकार मुक्त संयोजन, संचालन,सम्पादन ही इस प्रकार के पूजन कार्य को भव्य और दिव्य बना सकता है।