निप्र जावरा (लखन पंवार)कृषि विज्ञान केंद्र जावरा रतलाम द्वारा ’’जलवायु अनुकूल प्रजातियों’’ के बारे में एक दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन ’ग्राम सबलगढ़’ में आयोजित किया गया । प्रशिक्षण के अंतर्गत केवीके के डॉ ज्ञानेंद्र प्रताप तिवारी ने किसानो को जलवायु अनुकूल फसलों की नई प्रजातियां जैसे – आर.व्ही.एस. 2001-4, आर.व्ही.एस. 2002-4, जे.एस. 2069, जे.एस. 2029, आर.व्ही.एस.एम. 35 के बारे में विस्तार से बताया एवं किसानों को बी.बी.एफ. एवं रिज्ड फरो पद्धति से सोयाबीन फसल की बुवाई करने का आव्हान किया, जिससे कम एवं अधिक वर्षा की स्थिति में अधिक से अधिक उत्पादन लिया जा सकें। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती में रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता है, बल्कि प्रकृति में आसानी से उपलब्ध होने वाले प्राकृतिक तत्वों तथा जीवाणुओं के उपयोग से खेती की जाती है। प्राकृतिक खेती में जीवामृत (जीव अमृत), घन जीवामृत एवं बीजामृत का उपयोग पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने के लिए किया जाता है। ब्रह्मास्त्र एवं नीमस्त्र का प्रयोग फसलों में कीड़ों को मारने के लिए किया जाता है, इसके लिए हर 10 से 15 दिन के अंतर पर यदि इल्लियों का प्रकोप है तो ब्रह्मस्त्र प्रयोग करें । इन जैविक दवाओं का उपयोग पानी के साथ घोल बनाकर फसलों पर किया जाता है। प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र, अग्निअस्त्र, सोठास्त्र, दशपर्डी, नीम पेस्ट, गोमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उपस्थित डॉ. रोहताष सिंह भदौरिया ने खरीफ मौसम में लगाए जाने वाली उद्यानिकी फसलों के बारें में किसानो को बताया, साथ ही किसानो को बताया कि गर्मी के मौसम में खेतों की जुताई 20-30 से.मी. गहराई तक, किसी भी मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। यदि खेत का ढलान पूर्व से पश्चिम की तरफ़ हो तो जुताई उत्तर से दक्षिण की ओर यानि ढलान को काटते हुए करनी चाहिए, जिससे वर्षा का पानी व मिट्टी न बह पाए। ट्रैक्टर से चलने वाले तवेदार मोल्ड बोर्ड हल भी गर्मी की जुताई के लिए उपयुक्त है। उन्होने किसानो को बताया की किसानों को ज्यादा रेतीलें इलाक़ों में गर्मी की जुताई नहीं करनी चाहिए। मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले रहे तथा मिट्टी भुरभुरी ना हो पाए क्योंकि गर्मी में हवा द्वारा मिट्टी के कटाव की समस्या हो जाती है। प्रशिक्षण में उपस्थित कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ सुशील कुमार ने पशुओं में होने वाले टीकाकरण के बारे में विस्तार से बताया एवं पशुओं मे होने वाली बीमारी खुरपका, मुहपका ,गलघोंटू और लंगडी बुखार से संबंधित उपचार के बारें में किसानों को विस्तार से बताया। प्रशिक्षण कार्यक्रम में इफको के क्षेत्रीय प्रबंधक श्री सुरेन्द्रसिंह ने नैनो यूरिया के बारें में कृषको को विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की । प्रशिक्षण के अंत में उपस्थित सभी कृषको को पर्यावरण के लिए जीवन शैली के बारें में बताया एवं इस हेतु शपथ भी दिलाई । प्रशिक्षण में ग्राम सबलगढ़ से सत्यनारायण, प्रभुलाल, प्रकाश, लक्ष्मीनारायण, नानालाल सहित 64 किसान उपस्थित रहे है।