:: फिल्म के एक सिनेमेटोग्राफर आनंद बंसल की प्रारंभिक शिक्षा इन्दौर में ही हुई – छात्र जीवन में भी मिल चुका है बड़ा अवार्ड ::
इन्दौर । भारत के मिले पहले ऑस्कर अवार्ड के लिए चयनित द एलिफेंट व्हिस्परर्स फिल्म का इन्दौर से भी कनेक्शन जुड़ गया है। इस फिल्म के चार सिनेमेटोग्राफर में से एक, आनंद बंसल इन्दौर के ही हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा इन्दौर में ही हुई है। आज सुबह जैसे ही उनकी फिल्म को ऑस्कर अवार्ड मिलने की सूचना यहां पहुंची, अग्रवाल नगर में रहने वाले उनके परिवार और मनीष नगर में रहने वाले उनके चाचा की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। आनंद बंसल की आयु मात्र 26 वर्ष है और वे अपने छात्र जीवन में भी, जब मुंबई के व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल इंस्टीटयूट में पढ़ रहे थे, उन्होंने ‘ द रूम विथ नो विंडो’ फिल्म की सिनेमेटोग्राफी की थी और तब भी उन्हें जार्जिया की राजधानी तिल्बिसी में हुए अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में विशेष पुरस्कार दिया गया था।
आस्कर में पुरस्कृत होना अथवा फिल्म केवल नामांकित हो जाना भी फिल्म निर्माताओं का सपना रहता है। ऐसे में पहली फिल्म नामांकित हो जाए तो वह भी सपना साकार होने के समान है । इस वर्ष भारत में बनी तीन फिल्में अलग अलग समूह में नामांकित हुई है । दुनिया भर में बनने वाली असंख्य फिल्मों से एक एक समूह में पांच फिल्में नामांकित होती है, जिसमें से निर्णायक एक फिल्म को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर पुरस्कृत करते हैं। कार्तिकी गोंसाल्विस द्वारा निर्देशित नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री द एलिफेंट व्हिस्परर्स को शार्ट फीचर फिल्म में नामांकित किया गया । निर्देशक की यह पहली फिल्म है जिसे पांच साल तक चार सिनेमैटोग्राफर्स ने शूट किया है, जिनमें से एक इन्दौर के आनंद बंसल हैं।
आनंद ने अपने परिवार के सदस्यों से हुई चर्चा में बताया कि यह तमिल लघु वृत्तचित्र, एक अनाथ हाथी रघु की कहानी है, जिसकी मां को बिजली का करंट लग गया और वह भोजन और पानी की तलाश में भटक गया । इस दौरान देखभाल करने वाले बोम्मन और बेली के पास आया, जिन्होंने उसे अपने बच्चे के रूप में पाला। यह एक और अनाथ हाथी बेबी अम्मू की भी कहानी है। यह उस बोम्मन की भी कहानी है, जो केवल हाथियों के बीच ही रह सकता है। यह बेली की भी कहानी है, जिसने अपने पूर्व पति को एक बाघ के कारण खो दिया , उसकी छोटी बेटी की मृत्यु हो चुकी है । ऐसी स्थिति में अनाथ हाथी की देखभाल व उनसे मिलने वाला प्यार उसके जीवन का खालीपन को भरते हैं। यह बोम्मन और बेली की कहानी है जो हाथियों की साझा देखभाल के माध्यम से जीवन साथी बन जाते है। यह एक आदिवासी जीवन की कहानी है जहां विधवा पुनर्विवाह को सहजता से लिया जाता है । यह जलवायु परिवर्तन और वन्य जीवन को प्रभावित करने वाले मानव आक्रमण की कहानी भी है । इस फिल्म को पांच साल तक विभिन्न जलवायु एवं हाथियों की उम्र अनुसार बदलते व्यवहार को दृष्टिगत रखते हुए चार सिनेमेटोग्राफर द्वारा लगभग 200 घंटे का शूट किया गया। सम्पादित कर 40 मिनट की फिल्म तैयार की है।
आनंद के चाचा महेश बंसल ने बताया कि आनंद को पढ़ाई के दौरान ही सिनेमेटोग्राफी पर ही केन्द्रित गोल्डन आई फेस्टिवल में विशेष पुरस्कार मिल चुका है। वे शुरू से ही कैमरा प्रेमी रहे हैं। जब वे 9वीं या 10वीं में पढ़ रहे थे, तब अपनी मम्मी से कैमरा खरीदने के लिए पैसा मांगने की जिद करते रहते थे। ऐसे ही एक दिन जब उन्होंने अपने बड़े पापा याने मुझसे यही शिकायत की तो मैंने उसे तुरंत अपने पास से पैसे देकर कैमरा खरीदकर लाने के लिए कहा था। आज जब वह देश के लिए ऑस्कर जीतने वाली टीम का सदस्य बन गया है तो गर्व की अनुभूति हो रही है। लगता है कि आज खुद अपनी पीठ थपथपाने का अवसर मिल रहा है। इस प्रसंग से मुझे फिल्म थ्री इडियटस की याद भी आ रही है।