नई दिल्ली। सपा के राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने केंद्र सरकार पर स्वतंत्रता के अंतिम गढ़ न्यायपालिका को अपने हाथ में लेने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अदालतें इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़ी रहेंगी। जजों की नियुक्ति को लेकर जारी खींचतान और केंद्र के साथ तनाव पर कपिल सिब्बल ने यह साफ कर दिया कि वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली में अपनी कमियां हैं लेकिन सरकार को इसमें पूर्ण स्वतंत्रता देना उपयुक्त तरीका नहीं है।
एक समाचार चैनल को दिए खास इंटरव्यू में पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार जजों की नियुक्ति पर अंतिम निर्णय लेना चाहती है और ऐसा हुआ तो ये आपदा होगी।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर सिब्बल ने कहा कि वे किसी अन्य मुद्दे पर चुप नहीं रहे हैं वे इस पर चुप क्यों रहेंगे? उन्होंने कहा न्यायपालिका स्वतंत्रता का अंतिम गढ़ है जिसे उन्होंने (सरकार) अभी तक कब्जा नहीं किया है। उन्होंने चुनाव आयोग से लेकर राज्यपालों के पद तक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से लेकर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) और सीबीआई (केंद्रीय ब्यूरो) तक अन्य सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है। जांच विभाग एनआईए और निश्चित रूप से मीडिया पर भी कब्जा हो गया है।
सिब्बल ने कानून मंत्री की इस टिप्पणी को पूरी तरह से अनुचित करार दिया कि अदालतें बहुत अधिक छुट्टियां लेती हैं। सिब्बल ने तंज कसते हुए कहा कानून मंत्री प्रैक्टिसिंग एडवोकेट नहीं हैं। एक जज याचिकाओं की सुनवाई करने अगले दिन की सुनवाई की पृष्ठभूमि को पढ़ने और निर्णय लिखने में 10 से 12 घंटे का समय बिताता है। उनकी छुट्टियां स्पिलओवर को संभालने में बीतती हैं।
उन्होंने दावा किया कि अदालतें सांसदों की तुलना में अधिक मेहनत करती हैं। सिब्बल ने कहा कि पिछले एक साल में जनवरी से दिसंबर तक संसद ने 57 दिन काम किया है। जबकि अदालत साल में 260 दिन काम करती है।