आपकी चेतना आलोकित हो जाती है तभी फिर ब्रम्ह आप में से बहने लगता है।
परम पूज्य श्री माता जी
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है योगक्षेमं वहाम्यहम् अर्थात योग हो जाने पर शेम स्वयं मैं देखता हूं यही श्रीकृष्ण की युक्ति है कि सर्वप्रथम आत्मा होकर ईश्वर तत्व से जुड़ना होता है इसे ही योग कहा जाता है।
हमारा चेतना तंत्र तीन नाडियों से निर्मित है जिन्हें बाँई ओर की इड़ा नाड़ी, दाहिनी ओर की पिंगला नाड़ी एवं मध्य की सुषुम्ना नाड़ी के रुप में पहचाना जाता है।भारतीय दर्शन के अनुसार सत्य का पथ मध्य मार्ग अर्थात सुषुम्ना नाड़ी पर कहा गया है इसलिए सहजयोग की संस्थापिका श्री माता जी निर्मला देवी मानव के आत्म साक्षात्कार के विषय में बताते हुए कहती है कि हम मध्य मार्गी हैं ईश्वर को पाना हो तो मध्य से जाना होगा।
उनके अनुसार परमात्मा को पाने के
सात चक्रों व तीन नाडियों के तंत्र को समझना होगा।कुण्डलिनी के जागरण एवं षट् चक्र भेदन की क्रिया जो आत्मा का बोध कराती है,यह एक जीवंत क्रिया है ।सत्य मार्ग की यात्रा के लिए वे बताती हैं कि हमारे नाड़ी तंत्र में बीचोंबीच सुषुम्ना नाडी हैं। बीच में तुम्हें चढ़ाना हैं।….. कुण्डलिनी सुषुम्ना मार्ग से चढ़कर जब ब्रम्हरंध्र को पार कर लेती है, तो हमारे अन्दर से चैतन्य लहरियाँ बहने लगती है। जैसे ही कुण्डलिनी ब्रम्हरंध्र को छू लेती है, आपकी चेतना आलोकित हो जाती है तभी फिर ब्रम्ह आप में से बहने लगता है। ये जो बह रहा है साक्षात ब्रह्म है।
वैश्विक मंच पर अध्यात्म का नेतृत्व करते हुए परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी राष्ट्रीय सहज योग ट्रस्ट दिल्ली एवं सहज योग प्रतिष्ठान पुणे द्वारा श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के अवसर पर सहज साधकों के लिए 19.20.21 को वेबस्थली www.sahajayoga.org.in/live पर ऑनलाइन भव्य कृष्ण पूजन का आयोजन किया जा रहा है जिसमें विश्व भर के लाखों सहजयोगी साधक सम्मिलित होकर ध्यान , पूजन, भजन, एवं शास्त्रीय संगीत के विविध कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर चैतन्य के आशीर्वाद का लाभ लेंगे।
उल्लेखनीय है कि परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी द्वारा प्रस्थापित सहज योग पद्धति 1970 से लगातार विश्व भर में आत्मा के साक्षात्कार का प्रत्यक्ष अनुभव का प्रसारण कर रही है, जो वास्तव में परमात्मा अर्थात योगेश्वर से आत्मा के योग की अनुभूति कराता है भूत और भविष्य की चिंता से मुक्त होकर व्यर्थ के तनाव से मुक्ति देने वाली निर्विचारता ध्यान के द्वारा सहज ही संभव है।
परमशिव से जुड़ने की शक्ति आपके भीतर है”जब आप एक बीज को धरती माता में डालते हैं, तब यह स्वयं अपने आप ही अंकुरित होता है, सहज तरीके से। यही वो सहज है। यह सब आपके भीतर ही बना हुआ है, और आपको पूरा अधिकार है कि आप इस आत्मबोध को प्राप्त करें, यही जागरूकता की चतुर्थ अवस्था है जिसे संस्कृत में “तुर्या” अवस्था कहा गया है। यह चौथा आयाम है। यह सब आपके अंदर है। यह सारी शक्ति आपके अंदर है। आप इसी तरीके से बनाए गए हैं। हमें समझना होगा कि हमारा रचयिता एक महानतम संयोजक है।” परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी*