लेखिका उषाबहेन अनिलकुमार जोषी.पालनपुर.गुजरात।।
हमारे वेद पुराणों के अनुसार हमारी पावन तपोभूमि/ भारतभूमि मेँ हमारे तपोनिष्ठ ऋषियों, साधुसंतों, सर्वश्रेष्ठ सदगृहस्थोँ एवं तपस्वीनी मातृशक्तियों ने लोककल्याण एवं राष्ट्रकल्याण की उत्क्रष्ट भावना से राष्ट्र निर्माण की नींव डाली और हमारे राष्ट्र के तेज, ओजस्वीता और बलबुद्धि में अपना सर्वश्रेष्ठ अर्पण किया हे। हमारे वेदों में सज्जनों से युक्त समाज को राष्ट्र उत्कर्ष का आधार माना हे। स्वस्थ समाज एवम सबल राष्ट्र निर्माण के लिए उत्कृष्ट पारिवारिक जीवन राष्ट्र जीवन की आवश्यकता हे। ऋग्वेद में परिवार को तपस्थली कहा गया हे।।
बृहद अर्थ में देखें तो हम सब भारत माता के संतान एक ही परिवार हें। भारत माता हमारी जननी हे, मां हे। “जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी।” ,ये परिप्रेक्ष्य मे देखें तो मां के प्रति हमारा भी कर्तव्य बनता हे कि मातृभूमि का ऋण उतारने के लिए भी अपना योगदान देना हे। जैसे एक मां अपने बच्चों का लालनपालन करती हे, वैसे हि,राष्ट्रभूमि हमें.., भूमि, अन्न, जल, वायु, परिधान सब कुछ देती हे ,तभी तो हम परिवार के साथ सुख चैन से रह सकते हे। मातृभूमि का हम पर बहुत बडा उपकार हे। “हे वात्सल्य दायिनी, मंगलमयी पुण्यभूमि हमारा नमस्कार हे। हम आपकी महिमा बढाने हेतु कटिबद्ध हे।” ये सोच के साथ हम हमारी भावना, शक्ति अनुसार राष्ट्र कल्याण की और बढ सकते हे। मां भोम के लिए हमारे रीहदय में एवं मनमें कोई भेद संदेह आदि नहीं होना चाहिए ।।
आज देश चारों ओर से घीरा हुआ दिखाई दे रहा हे , जैसे आसुरी शक्तियाँ अपना कुरुप दिखाते तांडव कर रही हो ,राष्ट्र को निगलने पर उतारू हो !! ऐसे में हमारा कर्तव्य बनता है कि, हमसब किसी न किसी प्रकार से राष्ट्रोत्थान में हमारा संपुर्ण योगदान दें, और मारिच, ताडका जैसे राक्षसों का नाश करने में सहयोग करें।।
आज सच्चे राष्ट्रप्रेमीयों किनारे पर हे, हमारा परम सौभाग्य रहेगा कि ,हम उन्हें जाने, पहचाने!!! हमें ऐसा सेवायज्ञ करना हे,….जैसे…”यज्ञकुंड में समिधा जले”!! तभी तो राष्ट्रोन्नति का हमारा सपना साकार होगा। और उसके लिए हमें हि कर्म करना पडेगा। हमें जातिवाद प्रान्तवाद, भाषावाद, ऊंचनीच से परे होकर कर्म करना हे,जब जरूरत दिखाई दे,..हमारे अस्तित्व को भुल के कर्म करना पडेगा। यदि हम नीजी स्वार्थ, लालसा देखेंगे तो आगे चलते, हमारा, राज्य का या देश का भला नहीं होगा, किन्तु नीजी स्वार्थ से उपर उठके राष्ट्र हितैषी बनना हे, फिर आचरण मे लाना होगा ।। .
आज कोई भी क्षेत्र हो, राष्ट्रवाद के नाम अपनी लौबी मजबूत करना या अपना अस्तित्व टीकाने के लिए हमेँ तृष्टिकरण की नीति नहीं चाहिए। एक भी ऐसा शख्स घुसाया…., समझो..जूठ पे जूठ पाप होता जायेगा। यदि कोई सोचता हे कि ” हम सबसे बडे है, हमें कौन देखता हे रोकता हे, टोकता हे”!!!! किन्तु उपरवाला बाप सबसे बडा हे, जब वो परमात्मा की एक तीरछी नजर पडी…समझ लो सब कुछ खत्म!!
हम आजतक हमारे युगपुरुषों,वीरों, विरांगनाओं, समाजसुधारकों , जिन्होंने राष्ट्र के लिये अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया, उनकी बातें सुनते हें, सुनाते हे खुश होतें हे,नतमस्तक भी होतें हें। अच्छा हे…..किन्तु आज उनसे प्रेरित होकर हमें भी एक प्रण लेना हे कि देश को नुकसान करनेवाली दुष्ट शक्तियां ,जो मुंह फाडके बैठी हे उनको खत्म करने में सहायक बनना हे। “जन्मभूमि के लिए मैं…. कब, कया तर्पण करुं “??!! वो आग तनमन में लगानी हे।।
हमें रामराज्य देखना हे, चक्रवर्ती साम्राज्य देखना हे तो जो व्यक्ति या व्यक्ति विशेष अपना सर्वाधिक त्यागकर राष्ट्र के लिए निकल पडें हें उन्हें साथ देना होगा। भले कितने.. हि मतभेद हो, हमें मनभेद ना करते राष्ट्र निर्माण में एकजूट होके पुराने मनमुटाव, दुश्मनी, अपमान भुल के राष्ट्र हितों की ओर गति करनी होगी। जैसे वीर हनुमानजी रामकाज करने सदैव तत्पर रहते थे, वैसे हमें भी…,..” रामकाज किए बिना मोहे कहाँ विश्राम ” वाला घ्येय रखना होगा, नहिं तो अन्यायी, अधर्मीय़ों का दुष्प्रभाव देखना पडेगा। देश में युगपुरुषों ने जो बोया हे,.. उसे खोना नहीं हे। हमें भी..उसे सजाना हे, संवारना हे।। स़ोचो….हमारे देश के तो प्राणी भी…राष्ट्र के प्रति, स्वामी के प्रति वफादारी दिखाते प्राणों की आहुति तक दी हे !!
हम सब देशवासियों को मिलके राष्ट्र हित सोचना हे,ऐसे मे एक और बात भी हे,… कई व्यक्तिओं को सेवा करनी हे, किन्तु शुरुआत अपने घर से करनी हे, वो सेवक, पीड़ित वर्ग,कयुंकि उन्हें भी ज्ञाति परिवार के बंधन होतें हे, उन सबके पास भी हमें जाना हे । राष्ट्र को समर्थ बनाना हे तो.., बिछडे, पीछडे लाचारी से पीड़ितों को नजरअंदाज नही करना हे।उनकी रोटी कपडा मकान की चिंता करनी हे सेवक को समर्थ बनाने की ठाननी हे। देश के प्रति उनकी आस्था, विश्वास को बरकरार रखते सामाजिक समरसता लानी हे दीनदुखियों के प्रति समभाव रखकर उनके लिए, उनके साथ काम भी करना हे। स्वाभिमान, स्वावलंबन, सोहार्द, वीरता हमारी नसनस मे हे, तभी तो उनका खोया हुआ आत्मविश्वास, स्वाभिमान जगाना हे।।
देश की प्रगति मे युवाओं का भी श्रेष्ठ सहयोग आवश्यक हे।।
हमारे युवाओं को विकास मुहिम मे साथ रहना हे। माना जाता हे कि,/ सच भी हे कि प्रार्थना मे भी अमोघ शक्ति होती हे। प्राथना आत्मा का सात्विक भोजन आहार है, विज्ञान ने भी सबूतों के आधार माना हे की प्रार्थना,दुआ में प्राणदान देने की शक्तियां होती हे। , तो हमारे बडे बुजुर्गो और हम सभी भी संकल्प करें की हम सब जो रामकाज करें,मतलब राम कार्य श्रेष्ठ कार्य करें राम कार्य क्या है? रामकार्य नेक कर्म है , हम सब दिल से जो रामकाज करें/ श्रेष्ठ काम, नेक काम करें तो हमारा भी जीवन सार्थक होता हे। विद्वानों ने कहा हे कि, रामकार्य श्रेष्ठ संकल्प से कीया जाए तो उसका जीते जी जगतिया हो जाता हे, मतलब हमारे हाथों से नेक काम करें।,फिर कोई चिंता नहीं की , पंडीत जी या परिवारवालों ने हमारी उत्तर क्रिया ढंग से कि या नहीं।अपना हाथ जगन्नाथ, जो हाथ ने दिया वही साथ।और मुनाफे मे मनुष्य श्री चरणो मे स्थान पा लेता हे। इस लिए रामकार्य श्रेष्ठ कार्य करने चाहिए और साथमे प्रार्थना दुवा करें, वो पुण्यफल हम राष्ट्र को अर्पण करें। भारत भूमि मे रहनेवाले, सभी जो भी धर्म मे विश्वास रखते हो,मंदिर, मस्जिद,, देरासर, गीरजाघर, अगियारी, या चर्च मे जाओ. सभी भारत वासी को अपनी आस्था मे देशहित को जोडना हे। जन्मदिन हो या अपना त्योहार, सभी साथ मिलके संकल्प लें कि जो नेक काम किए हे उसका शुभ फल मातृभूमि को मिले……।, फलस्वरूप सभी देशवासियों मे एकता, समभाव प्रेम की आशंका दढ बनेगी और देश के प्रति जो मैलीमुराद/ राक्षसी शक्तियां हे उसका नाश अवश्य होगा।ऐसी सकारात्मक उर्जा से हमारी आसपास की दिव्य, सात्विक पराशक्तियां हमारे साथ होगी।।
देश की सुरक्षा, प्रगति के लिए अन्यायी, अधर्मीओं को साथ नहीं देना हे। हर एक राष्ट्रवादीओ को भावफेरी/ प्रवास करना हे ,सच्चे राष्ट्रवादियों को जान, पहचान उनके सामने अपनी बात रखनी हे, यदि बाहर नहीं जा सकते ह़ो तो न्याय के लिए आवाज बुलंद करनी हे। हमारे लिए/ देश के लिए यदि कोई लडता हे उसे मजबूती देनी हे। जैसे बीज बोएंगे, फल वैसा हि मिलेगा। आम के फल बोनेसे आम मिलेगा। हराम का फल खट्टा ही होगा। हमें पाप के भागीदार नहीं बनना हे। भुल़ों का परिवर्तन नहीं करना हे। यदि राष्ट्र के लिए कुछ भी नहीं किया,.. भुगतान करना पडेगा। जीवन तो कुत्ते बिल्ली भी अच्छा जी लेते हे, हमें कैसा जीना हे, हम पर निर्भर करता हे। मुफ्तखोरों और चोरबाजारी वालों को पहचान ना हे। हमारा पसीना/ मेहनत जरूर रंग लायेगा। सज्जनों क़ो आगे लाने हमें एडीचोटी का जोर लगाना पडेगा। यदि किसी को परखना हे,उसे सत्ता सोंप दो!! आटे चावल की पहचान हो जाएगी। स्रीयां घर संभालती हे,उसे मालुम हे, घर का बजट कैसे संभाला जाता हे!!
देश का कानुन , हरवकत हर जगह नहीं पहुंच सकता, थोड़ी मजबुरी हो सकती हे, किन्तु उपरवाले की कोई मजबुरी नहीं हे। हमें किसी की कटपुतली बनके,”तेरी भी, मेरी भी चुप ” वाली नीति नहीं अपनानी हे। सत्ता के सिंहासन मे भाई भतिजा वालों की पहचान करानी हे। हमें सेवक चाहिए, कारोबारी नहीं। माया के चक्र से बाहर निकल मातृभूमि के लिए भी समय निकालना हे।।
मनुष्य और राष्ट्र को उन्नत बनाने हेतु जो मापदंड हे, जो जरूरी सदगुणों हे उसे श्रीमद भगवतगीता में “दैवी संपदा ” कहा गया हे। संसार मेँ जीतने भी महापुरुष है, उन्होंने अपनी असीम कर्मठता एवं निष्ठा के साथ अपने जीवन के हरपाल राष्ट्र को समर्पित किये हें।. . राष्ट्रीय यज्ञ में हमें स्वाहा देवी को आहुति देनी हे। जो बात देवताओं तक अवश्य पहुंचेगी। हमारे शरीर के एक अंग मे, यदि कभी पीडा होती हे तब कैसा महसुस होता हे!!!, तो मातृभूमि का दर्द कौन समझेगा!!! आओ,..आज से… हम भगवान श्री भास्कर, गौ गंगा, गायत्री मैया को साक्षी मान संकल्प करें की हमें मातृभूमि के लिए अर्पण करना हे, तर्पण करना हे, कि..,” हमारी मातृभूमि एक स्वर्णिम युग की साक्षी बने। समग्र देशवासियों की भावना राष्ट्र शक्ति बनेगी। हमें ऐसे साम्राज्य का निर्माण करना हे, जो विश्व को सही रास्ता दिखाए। राष्ट्र का गुंजन विश्व सुने।वो सुनहरे पल का हमें इंतजार हे,… हमारा युवाधन हमारे देश मे हि रहे।ऐसे अद्वैत, वैभवशाली ,कल्याणयुक्त राष्ट्र का निर्माण हो। दिव्य शक्तियों का आशिर्वाद हमारे साथ हे। हमारे रीहदय के राम ,हमें सभी.. विकारों, दुर्गुणों से मुक्त करें।ऐसी मंगल घडी आयी हे। मन मे ये चिंतन जरूरी है।हमे दिव्य और भव्य भारत भूमि को सजाना हे। इस, अवतारोंवाली पावन अवनीको सजाना हे। देश को प्रभु श्रीराम जैसे आदर्श महान व्यक्तित्व की जरूरत हे, जो सत्ता के सिंहासन पर नहीं किन्तु लोगोँ के रीहदय मे राज करें। लाखों लोगों के बलिदानों को याद रखना हे। हमारे कर्म से दशों दिशाओं प्रफुल्लित हो। हमें गर्व होना चाहिए/ फक्र महसुस होनी चाहिए…, हमने भारत भूमि मे अवतरण किया हे।। भारत माता कि जय जय हिन्द जय वंदेमातरम ।