नई दिल्ली। तेज़ी से बदलती तकनीक और डिजिटल क्रांति ना केवल राजनीति बल्कि चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। पिछले एक दशक के दौरान माइक्रो-ब्लॉगिंग एक शक्तिशाली राजनीतिक उपकरण बनकर उभरा है। अब जब अगले वर्ष की शुरुआत में देश के सर्वाधिक जनसंख्या वाले सूबे यानी उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा जबकि आख़िरी में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं, तो देश के पहले बहुभाषी माइक्रो-ब्लॉगिंग ऐप कू ने भी अपनी कमर कस ली है और राजनेताओं, पार्टियों के साथ ही जनता को सीधे जोड़ने में कड़ी मशक्कत कर रहा है।
दरअसल, सोशल मीडिया के बढ़ते दायरे ने जनता को राजनीतिक दलों और उनके क्षेत्र के राजनेताओं से जोड़ने का काम किया है। जनता अपने नेता और पसंदीदा शख्सियतों से सीधे जुड़ना औऱ संवाद करना चाहती है। जो भी नेता सोशल मीडिया पर हैं, उन्हें दोहरा फायदा मिल रहा है और इससे दूर रहने वाले अपेक्षाकृत लाभ नहीं ले पा रहे हैं। ऐसे में अपनी जनता से हर वक्त जुड़ने और उनके दुख-दर्द, शिकायतें-समस्याएं सुनने और संवाद स्थापित करने के लिए सोशल मीडिया पर आना हर लिहाज से बेहतर साबित हो सकता है।
इस संबंध में कू ऐप के सह-संस्थापक और सीईओ अप्रमेय राधाकृष्ण ने बताया कि यों तो उनके जैसे प्लेटफ़ॉर्म के इस्तेमाल के कई तरीक़े हैं। फिर भी इनमें से एक यह है कि नेताओं और प्रमुख हस्तियों को उन लोगों के संपर्क में रहने की जरूरत है जो उन्हें सुनना चाहते हैं। ऐसे में कू ऐप कुछ ऐसा करता है जो कोई दूसरा नहीं करता, यानी उन्हें कई भाषाओं में अपनी जनता से जुड़ने में सक्षम बनाता है। जनता द्वारा पसंद की जाने वाली भाषा में किए जाने पर ये अपडेट और दोतरफा बातचीत वाक़ई में बेहद अमूल्य हो जाती है।
उन्होंने आगे बताया कि मूलरूप से कू ऐप अभिव्यक्ति का एक ऐसा समावेशी मंच है, जो सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है। इस मंच पर साहित्य, खेल, मीडिया, मनोरंजन, रंगमंच, आध्यात्मिकता समेत तमाम क्षेत्रों के लोग मौजूद हैं। हक़ीक़त तो यह है कि कू पर 70 से 80 प्रतिशत सामग्री और लोगों का पूरी तरह से राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। हालाँकि, जब बात राजनीति की आती है, तब राष्ट्रीय और राज्य दोनों ही स्तरों पर सत्तारूढ़ दलों और विपक्ष के नेताओं द्वारा हमारे ऐप से जुड़ने के सिलसिले ने महत्वपूर्ण प्रगति की है। इसकी वजह इसका एक पारदर्शी और समावेशी मंच होना है। फ़िलहाल हमारे मंच पर 17 राज्यों के मुख्यमंत्री, विभिन्न केंद्रीय मंत्री, सरकारी विभाग और राजनीतिक दलों के नेता हैं जो सक्रिय रूप से कू करने के साथ विभिन्न पहलों और विकास पर अपडेट साझा करते हैं। हमारे बहुभाषी फीचर्स ने नेताओं के लिए अपनी मूल भाषा में पूरी तरह से बातचीत करके अपने फॉलोअर्स से जुड़ने को बेहद आसान बना दिया है।
उन्होंने आगे कहा कि उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने वाले हैं। हम मानते हैं कि राजनीतिक नेताओं, राजनीतिक दलों, सरकारी विभागों को शामिल करने के मामले में हमे जिस तरह की तेज़ी नज़र आ रही है, तब यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इस चुनाव-उम्मीदवारों आदि के बारे में बहुत सारी बातचीत विशेष रूप से कू पर होगी। इसके अलावा बड़ी संख्या में उत्तर प्रदेश के लोगों ने कंटेंट पाने करने के साथ-साथ अपनी राय साझा करने के लिए कू पर अकाउंट बनाना शुरू कर दिया है और इनमें से ज्यादातर हिंदी में चर्चा करते हैं।
यों तो इस ऐप ने काफ़ी वक़्त में महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं, लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए इस पर तमाम तरह के कंटेंट क्रिएटर्स और यूज़र्स के अलावा कू में पहले से ही कई स्मार्ट फ़ीचर्स हैं जो इसे चुनावों में जनता के बीच तेज़ी से बढ़ाने के काम आएँगे। अप्रमेय राधाकृष्ण के मुताबिक़ कू ऐप की सबसे अनोखी विशेषता- यूजर्स को एक साथ अपना मैसेज कई भारतीय भाषाओं में देने और एक ही बार में कई समुदायों से जुड़ने में सक्षम बनाना है। उदाहरण के रूप में, कोई यूज़र अपना संदेश अंग्रेज़ी में लिखता है और उसे हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेगुलू, कन्नड़, गुजराती भाषा में भी भेजने के लिए सेलेक्ट करता है, तो एक ही वक़्त में यह मैसेज इन सारी भाषाओं में भी पोस्ट हो जाता है।
इतना ही नहीं, इस ऐप के अन्य बेहतरीन फीचर्स में टॉक-टू-टाइप (Talk to Type) भी शामिल है- जो यूज़र्स को मोबाइल पर बिना की-बोर्ड टाइपिंग किए, अपने विचार शेयर करने में सक्षम बनाता है। इस फ़ीचर के ज़रिये एक यूज़र केवल ज़ोर से बोलता है और फिर यह आसानी से टेक्स्ट में बदल जाता है। यानी यह माइक्रो-ब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म पर संवाद करने का सबसे आसान तरीका बन जाता है। यह टॉक-टू-टाइप फीचर विशेष रूप से उन लोगों के लिए बहुत काम का है, जो अपनी भाषा में लिखना या फिर टाइप करना नहीं जानते हैं।
अप्रमेय के मुताबिक़ इस सप्ताह की शुरुआत में चालू किया गया ऐप का लाइवस्ट्रीम फीचर प्लेटफॉर्म पर लाइव चर्चा और बहस का मौक़ा देगा और हमारे यूजर्स के अनुभव को और बेहतर करेगा।
कंपनी के सीईओ ने आगे बताया कि हमारे सर्वर भारत में ही होस्ट किए गए हैं। हमारे दृष्टिकोण से केंद्र सरकार की नीतियों के पीछे की वजह समझी जा सकती है और हम सम्मानपूर्वक इनका पालन करेंगे।