
इंदौर – वर्ष 2025-26 का केंद्रीय बजट आर्थिक विकास, वित्तीय अनुशासन और समावेशी विकास के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण को दर्शाता है। राजकोषीय घाटे को कम करके GDP के 4.4% तक लाया जाना इस बात को दर्शाता है कि, सरकार सभी प्रमुख क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश सुनिश्चित करते हुए वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के अपने संकल्प पर कायम है। मौजूदा कर-स्तर में बदलाव के बाद ₹12 लाख के आय को कर-मुक्त बनाने से मध्यम वर्ग के करदाताओं को बहुत जरूरी राहत मिलेगी। इससे अतिरिक्त खर्च के लिए आय बढ़ेगी और उपभोक्ता वस्तुओं की खपत को बढ़ावा मिलेगा। बीमा क्षेत्र में FDI सीमा को 100% तक बढ़ाने का फैसला लिया गया है, जो वैश्विक पूंजी को आकर्षित करने तथा उद्योग के भीतर प्रतिस्पर्धा एवं बेहतर कार्यक्षमता को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया एक रणनीतिक कदम है। कृषि क्षेत्र पर, खास तौर पर दलहन एवं कपास उत्पादन के लिए लक्षित मिशनों के माध्यम से विशेष ध्यान दिया गया है, जो खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने और किसानों की सहायता करने के सक्रिय प्रयास को दर्शाता है। इसके अलावा, ‘मेक इन इंडिया’ पहल के विस्तार के साथ-साथ MSMEs के लिए पहले से अधिक ऋण सहायता और स्टार्टअप के लिए एक विशेष निधि की घोषणा से उद्यमशीलता और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। बुनियादी ढांचा सरकार की एक बड़ी प्राथमिकता बनी हुई है, जिसमें लंबे समय के लिए ब्याज मुक्त ऋण के माध्यम से राज्यों को ₹1.5 ट्रिलियन की पर्याप्त राशि आवंटित की गई है, ताकि उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं को सुविधाजनक तरीके से पूरा किया जा सके। क्षेत्रीय हवाई संपर्क में निवेश के साथ-साथ महत्वपूर्ण खनिज विकास नीति की शुरूआत से यह जाहिर होता है कि, आवागमन, औद्योगिक आत्मनिर्भरता और संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ाने के लिए सरकार की सोच काफी दूरदर्शी है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो इस बजट के माध्यम से राजकोषीय विवेक और प्रगतिशील सुधारों के बीच का संतुलन बेहद सराहनीय है, जो विभिन्न क्षेत्रों और हितधारकों की जरूरतों को पूरा करते हुए यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक विकास की गति बरकरार रहे।