डॉ.महेन्द्र यादव की पाती थोड़ी जज़्बाती
पावन कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ। यह दिन न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि नंदवंशी अहीरों के लिए ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ एक विशिष्ट पर्व भी है।
कालिया नाग वध की अमर कथा
कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि, वह अविस्मरणीय क्षण जब श्रीकृष्ण ने यमुना नदी में उतरकर कालिया नाग को दंडित किया। इस घटना से जुड़ी कथा के अनुसार, जब गोकुल में नंद बाबा और माता यशोदा को यह समाचार मिला कि कृष्ण यमुना में गए हैं, तो उनके साथ समस्त गोकुलवासी व्याकुल होकर यमुना तट पर आकर बैठ गए। उस रात जो भोजन तैयार किया गया था, वह चिंता और प्रतीक्षा के कारण कोई ग्रहण नहीं कर सका।
भोर होते ही, जब भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग को परास्त कर उसके सिर पर नृत्य करते हुए यमुना से बाहर निकले, तब नंद बाबा और माता यशोदा की व्याकुलता शांति में बदल गई। उन्होंने रात का बना भोजन श्रीकृष्ण को प्रेमपूर्वक अर्पित किया। इस भोजन को सभी गोकुलवासियों ने प्रसाद रूप में ग्रहण किया। तभी से यह परंपरा आरंभ हुई कि “कार्तिक की रात्रि का भोजन अगहन की सुबह प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।”
पर्व का सांस्कृतिक महत्व
यह प्रथा द्वापर युग से लेकर आज तक नंदवंशियों और अहीर समाज द्वारा श्रद्धापूर्वक निभाई जा रही है। कार्तिक पूर्णिमा की रात को भोजन तैयार किया जाता है और अगहन (मार्गशीर्ष) मास की सुबह उसे भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। इसे लोक परंपरा में कहा जाता है, “कार्तिक को रांदों, अगहन में खाओ।”
नंदवंशियों का गौरवशाली इतिहास
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पालक पिता नंद बाबा, जो रिश्ते में उनके काका भी थे, को 64 पुत्र प्रदान किए। यही 64 पुत्र आगे चलकर नंदवंश के नाम से विख्यात हुए। ये नंदवंशीय अहीर कहलाए, और उनकी परंपरा को श्रीकृष्णवंशीय नंदवंशियों का गौरव कहा जाता है।
नंद बाबा और माता यशोदा के इस पीड़ा और प्रेम से जुड़े पर्व को आज भी अहीर समाज पूरी श्रद्धा और भावनाओं के साथ मनाता है। यह पर्व न केवल सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि नंदवंशियों की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति और प्रेम का प्रतीक भी है।
उपसंहार
कार्तिक पूर्णिमा का यह त्यौहार हमें न केवल श्रीकृष्ण की लीला और उनके प्रति नंद बाबा और माता यशोदा की अगाध भक्ति का स्मरण कराता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि प्रेम, त्याग और विश्वास से समाज और संस्कृति को किस प्रकार जीवंत रखा जा सकता है।