Rahul Mishra Bechain – Madhavexpress https://madhavexpress.com Thu, 28 Nov 2024 18:14:56 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.2 https://madhavexpress.com/wp-content/uploads/2023/03/IMG-20221108-WA0038-removebg-preview-1.png Rahul Mishra Bechain – Madhavexpress https://madhavexpress.com 32 32 अपस्किलिंग, रिस्किलिंग और रिइंवेंशन वक्त की दरकार: मेजर जनरल https://madhavexpress.com/?p=46119 https://madhavexpress.com/?p=46119#respond Thu, 28 Nov 2024 18:14:56 +0000 https://madhavexpress.com/?p=46119 मुरादाबाद

डियन आर्मी के मेजर जनरल अजय चतुर्वेदी ने कहा, स्टुडेंट्स को जीवन में दीर्घ कालीन सफलता को निष्ठा, प्रतिबद्धता, ईमानदारी और समर्पण महत्वपूर्ण हैं। छात्र जीवन के बाद जब स्टुडेंट्स प्रोफेशनल लाइफ में प्रवेश करते हैं तो इन गुणों के बूते ही किसी भी समस्या का त्वरित समाधान कर सकते हैं। उन्होंने तेजी से बदलती दुनिया में व्यक्तिगत और पेशेवर विकास के लिए अपस्किलिंग, रिस्किलिंग और रिइंवेंशन को अपनाने की आवश्यकता पर गहनता से प्रकाश डाला। मेजर जनरल चतुर्वेदी तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद की ओर से बिल्डिंग ए लीगेसीः द रोल ऑफ सिन्सेरिटी, कमिटमेंट एंड डेडीकेशन इन लास्टिंग सक्सेस पर लीडरशिप टाक सीरीज सेशन 10 में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे। इससे पूर्व मेजर जनरल अजय चतुर्वेदी ने बतौर मुख्य वक्ता, वीसी प्रो. वीके जैन ने बतौर मुख्य वक्ता, टिमिट के डीन प्रो. विपिन जैन, एसोसिएट डीन प्रो. अमित कंसल आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके ऑडी में लीडरशिप टाक सीरीज सेशन 10 का शुभारम्भ किया। टाक सीरीज के दौरान सवाल-जवाब का दौर भी चला। अंत में मुख्य वक्ता को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

मेजर जरनल चतुर्वेदी ने निष्ठा, प्रतिबद्धता, ईमानदारी और समर्पण की उदाहरणों के साथ विस्तार से व्याख्या की। उन्होंने बताया, ये गुण स्टुडेंट्स को सफलता और सकारात्मक जीवन जीने में हमेशा मदद करते हैं। अपने संदेश को स्पष्टता से प्रकट करने के लिए मेजर चतुर्वेदी ने ऐतिहासिक और समकालीन महान व्यक्तित्वों जैसे- सिखों के दसवें गुरू गुरु गोविंद सिंह, महान पराक्रमी महाराणा प्रताप, महान दार्शनिक चाणक्य, मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, सुपर 30 के संस्थापक श्री आनन्द कुमार, नौशेरा के शेर बिग्रेडियर मो. उस्मान, पर्यावरण योद्धा चामी मुर्मू आदि के उदाहरण भी स्टुडेंट्स के समक्ष प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में डॉ. मनोज अग्रवाल, डॉ. विभोर जैन, डॉ. नितिन अग्रवाल, डॉ. पंखुड़ी अग्रवाल, डॉ. वरुण कुमार सिंह। संचालन असिस्टेंट डायरेक्टर एकेडमिक्स डॉ. नेहा आनन्द ने किया।

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रिजर्वेशन डिबेट में टीएमयू मेडिकल कॉलेज के चिराग और अनुज विजेता https://madhavexpress.com/?p=46116 https://madhavexpress.com/?p=46116#respond Thu, 28 Nov 2024 16:10:48 +0000 https://madhavexpress.com/?p=46116 मुरादाबाद

तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर की ओर से संविधान दिवस पर आयोजित रिजर्वेशन इन हायर एजुकेशन पर हुई वाद-विवाद प्रतियोगिता, लॉ कॉलेज के श्री बिश्नानंद दुबे ने साइलेंट फीचर ऑफ कॉन्सटीट्यूशन पर दिया गेस्ट लेक्चर

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के तीर्थंकर महावीर मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च सेंटर की ओर से संविधान दिवस पर आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिता में एमबीबीएस सेकेंड ईयर के चिराग सिकरी और अनुज वर्मा विजेता रहे। रिजर्वेशन इन हायर एजुकेशन पर हुई डिबेट में चिराग सिकरी के साथ-साथ मानिक सेहरावत, आदित्य कुमार, हार्दिक वोहरा आदि ने पक्ष, जबकि अनुज वर्मा के संग-संग राजुल जैन, आराध्या शर्मा, मानसी यादव आदि ने विपक्ष में अपने-अपने विचार रखे। वाद-विवाद प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में लॉ कॉलेज के श्री बिश्नानंद दुबे, कम्युनिटी मेडिसिन के डॉ. चिंटु चौधरी, माइक्रोबायोलॉजी के डॉ. सुधीर सिहं, फिजियोलॉजी की डॉ. जसप्रीत कौर आदि शामिल रहे। इससे पूर्व साइलेंट फीचर ऑफ कॉन्सटीट्यूशन पर आयोजित गेस्ट लेक्चर में लॉ कॉलेज के श्री बिश्नानंद दुबे ने बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार व्यक्त किए। श्री दुबे ने संविधान के विभिन्न महत्वपूर्ण आर्टिकल्स के बारे में मेडिकल स्टुडेंट्स को विस्तार से समझाया। उन्होंने संविधान में नागरिकों को दिए गए मूल अधिकारों के संग-संग मूल कर्तव्यों के महत्व पर भी गहनता से चर्चा की। श्री दुबे ने संविधान निर्माण की प्रक्रिया के बारे में भी अपने विचार प्रस्तुत किए। इस अवसर पर मेडिकल कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल प्रो. प्रीथपाल सिंह मटरेजा ने मुख्य वक्ता श्री बिश्नानंद दुबे का बुके देकर स्वागत किया।

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आध्यात्म जगत के राजहंस आचार्यश्री विद्यासागर महाराज https://madhavexpress.com/?p=43835 https://madhavexpress.com/?p=43835#respond Wed, 16 Oct 2024 20:14:34 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43835 प्रो. श्याम सुंदर भाटिया

बाईस बरस की उम्र में संन्यास लेकर दुनिया को सत्य-अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले आचार्यश्री विद्यासागर महाराज की एक झलक पाने लाखों लोग मीलों पैदल दौड़ते रहे हैं। आचार्य श्रेष्ठ के प्रवचनों में धार्मिक व्याख्यान कम और ऐसे सूत्र ज्यादा होते, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन को सफल बना सकते हैं। कर्नाटक में जन्मे वह अकेले ऐसे संत थे, जिनके जीवंत रहते हुए उन पर अब तक 60 से अधिक पीएचडी हो चुकी हैं। हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला, कन्नड़, मराठी, प्राकृत, अपभ्रंश सरीखी भाषाओं के जानकार विद्यासागरजी का बचपन भी आम बच्चों की तरह बीता। गिल्ली-डंडा, शतरंज आदि खेलना, चित्रकारी स्वीमिंग आदि का इन्हें भी बहुत शौक रहा, लेकिन जैसे-जैसे बड़े हुए आचार्य श्रेष्ठ का आध्यात्म की ओर रुझान बढ़ता गया। आचार्य श्रेष्ठ का बाल्यकाल का नाम विद्याधर था। कर्नाटक के बेलगांव के ग्राम सदलगा में 10 अक्टूबर, 1946 को शरद पूर्णिमा को श्रेष्ठी श्री मल्लप्पा अष्टगे और श्रीमती अष्टगे के घर जन्मे आचार्यश्री ने कन्नड़ के माध्यम से हाई स्कूल तक शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वह वैराग्य की दिशा में आगे बढ़े और 30 जून, 1968 को मुनि दीक्षा ली। आचार्य का पद उन्हें 22 नवंबर, 1972 को मिला। आचार्य श्रेष्ठ की ज्ञान गंगा के सम्मुख करोड़ों-करोड़ लोग नतमस्तक रहे हैं। इनमें तमाम हस्तियां भी शामिल हैं। 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, 2016 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी, 2018 में अमेरिकी राजदूत श्री केनेथ जस्टर, फ्रांसीसी राजनयिक श्री अलेक्जेंड्रे जिग्लर, तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन और जीवीसी श्री मनीष जैन भी उनका आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं। आचार्यश्री 28 जुलाई, 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के विशेष आमंत्रण पर मध्य प्रदेश विधानसभा में प्रवचन कर चुके थे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ ने आचार्यश्री को राज्य अतिथि का दर्जा दे रखा था।

20वीं-21वीं शताब्दी के साहित्य जगत में एक नए उदीयमान नक्षत्र के रुप में जाने-पहचाने जाने वाले शब्दों के शिल्पकार, अपराजेय साधक, तपस्या की कसौटी, आदर्श योगी, ध्यान ध्याता-ध्येय के पर्याय, कुशल काव्य शिल्पी, प्रवचन प्रभाकर, अनुपम मेधावी, नवनवोन्मेषी प्रतिभा के धनी, सिद्धांतागम के पारगामी, वाग्मी, ज्ञानसागर के विद्याहंस, प्रभु महावीर के प्रतिबिंब, महाकवि, दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी की आध्यात्मिक छवि के कालजयी दर्शन आनंद से भर देते थे। सम्प्रदाय मुक्त भक्त हो या दर्शक, पाठक हो या विचारक, अबाल-वृद्ध, नर-नारी उनके बहुमुखी चुम्बकीय व्यक्तित्व-कृतित्व को आदर्श मानकर उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपने आपको धन्य मानते रहे हैं। आपने राष्ट्रभाषा हिन्दी में प्रेरणादायक युगप्रवर्तक महाकाव्य ‘मूकमाटी’ का सर्जन कर साहित्य जगत में चमत्कार कर दिया। इसे साहित्यकार ‘फ्यूचर पोयट्री’ एवं श्रेष्ठ दिग्दर्शक के रूप में मानते हैं। विद्वानों का मानना है कि भवानी प्रसाद मिश्र को सपाट बयानी, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का शब्द विन्यास, महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की छान्दसिक छटा, छायावादी युग के प्रमुख स्तंभ सुमित्रानंदन पन्त का प्रकृति व्यवहार, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता महादेवी वर्मा की मसृष्ण गीतात्मकता, बाबा नागार्जुन का लोक स्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह ’मूकमाटी’ में देखी जा सकती है।

आचार्य श्रेष्ठ का मातृभाषा प्रेम, देशभक्ति, हिंदी के प्रति अगाध आस्था जगजाहिर रहा है। वह हमेशा गर्व से कहते थे- हिंदी में लिखो, हिंदी बोलो, इंडिया नहीं, भारत बोलो, शिक्षा के साथ संस्कार पाओ, हथकरघा के वस्त्र अपनाओ, स्वदेशी पहनो, स्वावलंबन लाओ, भारतीय संस्कृति बचाओ। वह युवाओं को अपने आशीर्वचन में अक्सर कहते थे, उन्हें अंग्रेजी मिटानी नहीं है बल्कि अंग्रेजी को हटाना है, क्योंकि इसके पीछे बहुत से कारण हैं। विश्व के कई देशों में अपनी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाती है। वे देश विकास की बुलंदियों पर हैं। फिर हमारा देश हिंदी को अपनाने में पीछे क्यों है? सर्वाेच्च और उच्च न्यायालयों में करोड़ों वाद लंबित है। इसके मूल में भी कहीं न कहीं भाषा ही है। अपनी भाषा राष्ट्र भाषा से ही देश का विकास, जन-जन से जुड़ाव और ज्ञान का प्रकाश फैलाना संभव है। व्यापार की भाषा, बोलचाल की भाषा, प्रशासनिक भाषा, राष्ट्र भाषा या प्रादेशिक भाषा होनी चाहिए। आचार्यश्री मानते थे कुछ लोगों को लगता है अंग्रेजी का विरोध होने से हम बाकि देशों की भाषा से कट जाएंगे। अंग्रेजी के बिना तो कुछ भी नहीं है, यह केवल भ्रम है। आचार्य श्रेष्ठ युवाओं को नामचीन जर्नलिस्ट डॉ. वेद प्रताप वैदिक की पुस्तक- अंग्रेजी हटाओ क्यों और कैसे? को पढ़ने की सलाह दी थी, चूंकि उन्होंने भी इस पुस्तक का अध्ययन किया था। यह ही नहीं, डॉ. वैदिक रामटेक हो या नागपुर, वह समय-समय पर जैन संत शिरोमणि के दर्शनार्थ आते-जाते रहते थे।

आचार्य श्रेष्ठ मानते रहे हैं, वर्तमान शिक्षा नीति अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। शिक्षा धन से जुड़ गई है। आज की शिक्षा के साथ-साथ अनुभव नहीं है। डिग्री तो मिल जाती है, लेकिन सारी पढ़ाई-लिखाई करने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती है। यह सब हमारे देश में पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव है। आज इतिहास को स्कूलों में लीपा-पोती करके पढ़ाया जाता है, हमारा पुराना इतिहास उठा कर देखो। आचार्यश्री ने कहा था, मैं भाषा के रूप में अंग्रेजी का विरोध नहीं करता हूं लेकिन अंग्रेजी भाषा को विश्व की अन्य भाषाओं के साथ ऐच्छिक रखना चाहिए। शिक्षा का माध्यम मातृभाषाएं ही हों। अंग्रेजों ने भारत की परंपरा के साथ चालाकी करके ‘भारत’ को ‘इंडिया’ बना दिया है। भारत के साथ हमारी संस्कृति और इतिहास जुड़ा है, लेकिन इंडिया ने भारत की भारतीयता, जीवन पद्धति, नैतिकता, रहन-सहन और खान-पीन सब कुछ छीन लिया है। आचार्य शिरोमणि ने यह सलाह भी दी थी, शिक्षा में शोधार्थी की रुचि, किसमें है, इसकी स्वतंत्रता होनी चाहिए। आज मार्गदर्शक के अनुसार शोधार्थी शोधकर्ता हैं। इससे मौलिकता नहीं उभर पा रही है। शिक्षा रोजगार पैदा करने वाली हो, बेरोजगारी बढ़ाने वाली नहीं हो, शिक्षा कोरी किताब नहीं हो।

नई शिक्षा नीति-एनईपी-2020 में मातृभाषा/क्षेत्रीय भाषा की खुशबू, व्यावसायिक शिक्षा, अंग्रेजी भाषा को वैकल्पिक भाषा, शिक्षा रोजगारपरक होने की तमाम खूबियों में आचार्यश्री की दूरदृष्टि सामाहित है। इसके पीछे बड़ा दिलचस्प और प्रेरणादायी किस्सा है। पदम विभूषण, इसरो के पूर्व अध्यक्ष एवं एनईपी कमेटी के चेयरमैन डॉ. कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन नई शिक्षा नीति के मसौदे के सिलसिले में राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मिले तो उन्होंने चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन को सलाह दी थी कि उन्हें एक बार आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज से जरुर मिलना चाहिए और उनकी बेशकीमती राय जाननी चाहिए। राष्ट्रपति की नेक सलाह पर चेयरमैन डॉ. कस्तूरीरंगन अपनी कमेटी के और सदस्यों-प्रो.टीवी कट्टीमनी, डॉ. विनयचन्द्र बीके, डॉ. पीके जैन इत्यादि के संग 21 दिसम्बर, 2017 को दर्शनार्थ और चर्चार्थ छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में विराजित आचार्यश्री से मिले थे। करीब 53 मिनट के इस बहुमूल्य संवाद और आशीर्वचन की झलक नई शिक्षा नीति में साफ-साफ दिखाई देती है। गुरु संकेतों को बिल्कुल स्पष्ट समझा और पढ़ा जा सकता है। नई शिक्षा नीति के ड्राफ्ट दस्तावेज के पेज नं0-455 पर इसका स्पष्ट उल्लेख भी है। आचार्य श्रेष्ठ से पहले भारत रत्न एवं मशहूर रसायन विज्ञानी सीएनआर राव का भी नाम दर्ज है। आचार्य श्रेष्ठ माता-पिता की द्वितीय संतान होकर भी अद्वितीय थे। संत शिरोमणि के लिए धरती ही बिछौना था। आकाश ही ओढ़ौना था। दिशाएं ही वस्त्र बन गए थे। आध्यात्म जगत के इस राजहंस की स्मृतियों को सादर प्रणाम।

(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट और रिसर्च स्कॉलर हैं। 2019 में मॉरीशस के अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन में पत्रकार भूषण सम्मान से अलंकृत हो चुके हैं। प्रो. भाटिया कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन के एचओडी भी रह चुके हैं। संप्रति नॉर्थ इंडिया की नामचीन प्राइवेट यूनिवर्सिटी में मीडिया मैनेजर हैं।)

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टीएमयू ऑप्टोमेट्री के 24 स्टुडेंट्स को जॉब जानी-मानी कंपनी लेंसकार्ट में हुआ चयन यूपी के संग-संग दिल्ली, गुरूग्राम, गुजरात, कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, हिमाचल, पंजाब में देंगे बतौर ऑप्टोमेट्रिस्ट सेवाएं https://madhavexpress.com/?p=43695 https://madhavexpress.com/?p=43695#respond Sun, 13 Oct 2024 20:23:45 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43695 मुरादाबाद (माधव एक्सप्रेस)

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद में कैंपस ड्राइव के तहत कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज़ के ऑप्टोमेट्री विभाग के 24 स्टुडेंट्स का जानी-मानी कंपनी लेंसकार्ट में चयन हुआ है। चयनित ये सभी छात्र ऑप्टोमेट्री अंतिम वर्ष के हैं। लेंसकार्ट में ये छात्र बतौर ऑप्टोमेट्रिस्ट अपनी सेवाएं देंगे। इन स्टुडेंट्स को लेंसकार्ट के विभिन्न सेंटर्स- दिल्ली, गुजरात, यूपी, कर्नाटक, एमपी, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल, पंजाब, गुरूग्राम आदि में जॉब करने का मौका मिलेगा। इस चयन प्रक्रिया में सबसे पहले स्टुडेंट्स के शैक्षिक, तकनीकी और सामान्य ज्ञान की लिखित परीक्षा हुई। ग्रुप डिसक्शन के जरिए लिखित परीक्षा में सफल छात्रों के संवाद कौशल, नेतृत्व क्षमता और टीम वर्क को परखा गया। अंत में पर्सनल इंटरव्यू के बाद 24 स्टुडेंट्स का फाइनल चयन किया गया। चयन प्रक्रिया में लेंसकार्ट के विशेषज्ञ श्री कुलदीप नेगी और उनकी टीम शामिल रही। चयनित होने वाले छात्रों में- महक कंसल, फरमान हुसैन, देव राजपूत, नितिन पाल, सुरेन्द्र कुमार, अंशिका राजपूत, आर्यन दयाल, शैली सिसोदिया, ज़रीन खान, शहबाज खान, प्रियांशी, आयुषी चौधरी, अलवीरा फिरोज, तूबा खान, वंशदीप शर्मा, जय जैन, सुफिया रब्बानी, हार्दिक गोयल, शगुन चौधरी, महरीन, शाजिया बतूल, मो. राशिद, मो. नाजिम, मो. वसीम आदि शामिल है।

कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज़ के प्रिंसिपल प्रो. नवनीत कुमार ने चयनित छात्रों को बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। चयन प्रक्रिया से पहले प्री प्लेसमेंट टॉक में विशेषज्ञ श्री कुलदीप नेगी ने ऑप्टोमेट्री स्टुडेंट्स को करियर के विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विस्तार से बताया। श्री नेगी ने कहा, मायोपिया, टेली ऑप्टोमेट्री और एआई डायग्नोस्टिक्स जैसी तकनीकी प्रगति के कारण दिनों-दिन ऑप्टोमेट्रिस्ट की मांग बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया, लेंसकार्ट नए कर्मचारियों के लिए व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम, कौशल वृद्धि और नेतृत्व के बेहतर अवसर देती है। लेंसकार्ट न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी करियर बनाने का स्वर्णिम द्वार खोलती है। प्री प्लेसमेंट टॉक के दौरान ऑप्टोमेट्री के एचओडी श्री राकेश कुमार यादव, फैकल्टीज़- श्री सौरभ सिंह बिष्ट, श्री पिनाकी अदक, मिस श्रेया ठकराल, मिस जूही यादव, मिस अंजली रानी आदि के संग-संग ऑप्टोमेट्री के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

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गुरुकुल और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में श्रीराम https://madhavexpress.com/?p=43692 https://madhavexpress.com/?p=43692#respond Sun, 13 Oct 2024 20:12:35 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43692 सुरेश जैन

श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। श्रीराम का जीवन समाज के लिए आदर्श है। उनकी शिक्षा गुरुकुल में होती है। बाबा तुलसी के शब्दों में गुरु गृह पढ़न गए रघुराई, अल्पकाल विद्या सब पाई। श्रीराम चक्रवर्ती सम्राट के बेटे हैं, किन्तु वे शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में जाते हैं। यह केवल प्रतीकात्मक नहीं है। इस व्यवस्था का व्यक्तित्व निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। वे वहां दूसरे विद्यार्थियों की तरह ही रहते हैं। गुरुकुल के कार्यों में उसी तरह हाथ बंटाते हैं, जैसे दूसरे बटुक करते हैं। गुरुकुल में आम और ख़ास के बीच कोई भेद नहीं है। गुरुकुल में परा और अपरा अर्थात् लौकिक और अलौकिक दोनों तरह की ही शिक्षा ग्रहण की जाती है। परा विद्या में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, नक्षत्र, वास्तु, आयुर्वेद, वेद, कर्मकांड, ज्योतिष, सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा एवम् धनुर्विद्या शामिल है। इससे उनकी समझ, अनुभव, विवेक, विचारशीलता और सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार होती है। इसी तरह के पाठ्यक्रमों की परिकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में भी की गई है। इसमें मुख्य विषय के अलावा आनुषांगिक विषयों को भी पढ़ाए जाने के लिए पाठ्यक्रम बनाए गए हैं। गुरुकुल में भी इसी तरह की व्यवस्था है। क्योंकि, राम चक्रवर्ती सम्राट के बेटे हैं। इसलिए उनके मूल विषय के रूप में कूटनीति और धनुर्विद्या जैसे विषयों को पढ़ना अनिवार्य है। किन्तु इसके साथ ही निरुक्त, छंद, नक्षत्र, वास्तु, आयुर्वेद, वेद, कर्मकांड, ज्योतिष जैसे विषयों की भी शिक्षा दी जाती है। ताकि उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।

गुरुकुल में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि विद्यार्थी के लिए जितना महत्वपूर्ण उसका औपचारिक अध्ययन है, उतना ही महत्वपूर्ण अध्ययन के आसपास का परिवेश है। उस परिवेश के माध्यम से छात्रों में आत्मनिर्भरता, अनुशासन, समय प्रबंधन, सामाजिक सामंजस्य की कला और नेतृत्व के गुण जैसे व्यावहारिक ज्ञान, विद्यार्थी स्वयं ही आत्मसात कर लेता है। शिक्षा की पूर्णता में दोनों ही समान रूप से आवश्यक हैं। कौशल के राजकुमार राम गुरुकुल में एक बटुक की तरह इन सभी गुणों को सीखते हैं। गुरुकुल में राम विद्या ग्रहण करने जाते हैं। विद्या और ज्ञान में अंतर है। सूचनाओं के संकलन मात्र से ज्ञान तो प्राप्त हा सकता है, किन्तु विद्या उससे अलग है। विद्या सोदेश्य होती है। यह व्यक्तित्व को गढ़ने का एक माध्यम होती है। विष्णु पुराण में कहा गया है- तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तए आयासाय परम कर्म विद्यान्या शिल्प नैपुणम अर्थात् कर्म वही है, जो बंधन में न बांधे और विद्या वही है, जो मुक्त करे। अन्य सभी कर्म केवल निरर्थक क्रिया हैं, जबकि अन्य सभी अध्ययन केवल कारीगरी मात्र हैं। गुरुकुल में राम को दी जाने वाली विद्या मुक्ति देने के लिए दी जाने वाली शिक्षा है। उसका उनके व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ा है। मुक्ति का अर्थ सामाजिक जीवन की कुरीतियों से मुक्ति। अंधविश्वास से मुक्ति। मुक्ति का अर्थ ऊंच-नीच के मनोभाव से मुक्ति। मुक्ति के मायने अवैज्ञानिक सोच से मुक्ति। स्वार्थ और जड़ता से मुक्ति। हर तरह के अहंकार से मुक्ति। श्रीराम के व्यक्तित्व पर इस विद्या का गहरा असर पड़ा है और यह उनके भावी जीवन में दृष्टिगोचर भी हुआ है। विद्या के बारे में कहा गया है- विद्या ददाति विनयं, विनयाद्याति पात्रताम। विद्या विनय देती है। उससे पात्रता विकसित होती है। व्यक्ति उतना ही सीख पाता है, जितनी उसकी पात्रता होती है। जिसकी पात्रता जितनी व्यापक होती है, उसका व्यक्तित्व भी उतना ही व्यापक होता है। सागर जैसा व्यापक होने के लिए उसके जैसी व्यापक विनम्रता और शांत चित्त की आवश्यकता होती है। श्रीराम गुरुकुल जाकर इसी विनम्रता को आत्मसात करते हैं, जो उनके व्यक्तित्व को सागर जैसा विस्तार देती है। जिसके लिए नर-वानर में कोई भेद नहीं। नगरवासी और वनवासी उनके लिए एक जैसे हैं। सुग्रीव का भी स्वागत है और अपने विरोधी रावण के छोटे भाई को भी शरणागत किया जाता है। गुरुकुल में आत्मसात किए गए इन सभी सद्गगुणों का असर श्रीराम के जीवन पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि आरंभिक शिक्षा मातृभाषा में हो, शिक्षा में भारतीय मूल्यों और चरित्र निर्माण पर विशेष जोर हो। शिक्षा समावेशी हो। एकांगी नहीं हो और विद्यार्थियों में कौशल का विकास हो। राम के गुरुकुल की शिक्षा प्रकृति के नैसर्गिक परिवेश में दी जाती है। बटुक स्वयं अपनी कुटीर का निर्माण करता है और कठिन परिस्थितियों में भी जीवन-यापन के गुर सीखता है। सीखने के लिए आसपास के प्रतीकों और बिंबों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे समझने में सुविधा हो और उसके आधार पर विद्यार्थियों में तथ्यों का विश्लेषण करके सार्थक निष्कर्षों तक पहुंचने की क्षमता हो। स्वतंत्र भारत में गठित विशेषज्ञ समितियों की एकमत राय रही है कि शिक्षा भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में भी इस पर काफी बल दिया गया है। श्रीराम के गुरुकुल में शिक्षा और संस्कार इस तरह से एकरूप हैं कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। संस्कार, शिक्षा पर आधारित है और शिक्षा संस्कारों की आधारशिला है। इस माध्यम से विद्यार्थियों को संस्कारमय बनाकर उन्हें आदर्श मानव बनाना ही शिक्षा व्यवस्था का प्रमुख उद्देश्य है। राम के व्यक्तित्व के रोम-रोम में इसका प्रभाव स्पष्ट नजर आता है। राम द्वारा गुरुकुल में प्राप्त की गई शिक्षा उन्हें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता देती है। अपने राज्य से दूर जहां पर उन्हें कोई जानने वाला नहीं है, वहां पर वे स्थानीय लोगों को एकजुट करते हैं और समुद्र पर सेतु निर्माण का जटिल कार्य संपन्न करते हैं। तत्पश्चात रावण जैसे शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में कौशल विकास के साथ ही व्यावहारिक शिक्षा पर भी उतना ही ध्यान दिया गया है, जितना कि सैद्धांतिक शिक्षा पर। तत्कालीन परिस्थितियों में राजकुमार के लिए युद्ध कौशल उतना ही आवश्यक था, जितना कि कूटनीति का ज्ञान। राम अपने गुरुकुल से सैद्धांतिक विषयों के साथ ही युद्धकला की भी शिक्षा ग्रहण करते हैं। अपनी इस विद्या के बल पर ही वे ताड़का, मारीच और खर-दूषण जैसे समाज विरोधियों को समाप्त कर समाज में शांति स्थापित करते हैं और न्याय की रक्षा के लिए रावण जैसे शक्तिशाली राजा पर भी विजय प्राप्त करते हैं।

(लेखक तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद-यूपी के कुलाधिपति हैं।)

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डॉ. महेंद्र यादव की पाती थोड़ी जज़्बाती हमने अपने जीवन में कई बदलाव देखे हैं,शायद आने वाली पीढ़ियां यह सब कभी न देख पाएंगी। https://madhavexpress.com/?p=43689 https://madhavexpress.com/?p=43689#respond Sun, 13 Oct 2024 19:47:39 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43689 यह पाती उन सभी के नाम है जो पचास की उम्र पार कर चुके हैं या उसके करीब पहुंच रहे हैं। यह पाती उन बीते दिनों की है, जब हम अपने बचपन के आँगन में खेलते थे, और दुनिया हमारे लिए उतनी ही मासूम और सरल थी जितनी हमारी ख्वाहिशें। जब हम 2024 में खड़े होकर 1960 के दशक की ओर देखते हैं, तो एक गहरी उदासी और मुस्कान दोनों ही दिल में उठती हैं। हम वो पीढ़ी हैं, जिसने अपने जीवन में इतने बदलाव देखे हैं जितने शायद आने वाली पीढ़ियां कभी न देख पाएंगी।

हम वो आखिरी पीढ़ी हैं जिन्होंने बैलगाड़ी की धीमी चाल से लेकर सुपरसोनिक जेट की उड़ान का रोमांच देखा। बैरंग ख़तों की मोहब्बत से लेकर लाइव चैटिंग की फुर्ती तक का सफर किया। वो खत जिनमें महीनों इंतजार के बाद जवाब आता था, और अब मोबाइल पर पलक झपकते ही जवाब मिल जाता है। हम वो लोग हैं जिन्होंने मिट्टी के घरों में परियों की कहानियां सुनी हैं और ज़मीन पर बैठकर खाना खाया है। आज की पीढ़ी के लिए ये बातें केवल कहानियों की तरह हैं, लेकिन हम जानते हैं कि उनमें कितनी सच्चाई और सरलता थी।

हमने वो शामें बिताईं जब मोहल्ले के मैदानों में गिल्ली-डंडा, खो-खो और कबड्डी खेलते थे। उस वक्त मोबाइल का कोई अस्तित्व नहीं था, सिर्फ़ दोस्त और उनके साथ खेलते समय का आनंद था। हम वो आखिरी पीढ़ी हैं जिन्होंने लालटेन की रोशनी में किताबें पढ़ीं और तख़्ती पर लिखाई की। हमारी बचपन की यादें उन दिनों से जुड़ी हैं जब हर चीज़ में मासूमियत थी, चाहे वो होमवर्क करते समय हो या दोस्तों के साथ खेलते समय।

याद है, वो चिट्ठियाँ जो कभी समय से नहीं पहुंचती थीं, लेकिन जब मिलतीं तो ऐसा लगता था मानो किसी ने दिल की गहराईयों से बातें की हों। आज के दौर में वो इंतजार और उसकी क़ीमत हम ही समझ सकते हैं, क्योंकि हमने उन लम्हों को जिया है। हमने बिजली के बिना गर्मी की दोपहरी और सर्द रातें काटी हैं, कूलर और एसी का तो दूर-दूर तक नाम भी नहीं था। लेकिन फिर भी हम खुश थे, क्योंकि हमारे पास रिश्तों की गर्माहट थी।

हम वो लोग हैं जिन्होंने स्कूल जाते समय खोपरे का तेल सिर पर लगाकर अपनी माँओं की ममता महसूस की है। हमने स्याही वाली दवात से हाथ, कपड़े, और कभी-कभी चेहरा भी रंगा है। तख़्ती धोने का मज़ा और उसमें छुपी मेहनत हमें आज की कागजी दुनिया से ज्यादा सुकून देती थी। टीचर्स की सख्तियाँ और घर आकर फिर से डांट खाने का अनुभव आज की पीढ़ी नहीं जानती, लेकिन वो मार भी हमें कुछ न कुछ सिखा गई।

हम वो लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास को अपने बचपन और युवावस्था में महसूस किया। वो मोहल्ले के बुज़ुर्ग, जिनकी इज्ज़त करना और उनसे डरना दोनों ही ज़रूरी थे। वो सफेद केनवास शूज जिन्हें खड़िया के पेस्ट से चमकाया जाता था, और वो गुड़ की चाय जो हर घूंट के साथ हमें सुकून देती थी। आज की मॉडर्न चाय की चुस्कियों में वो मिठास नहीं है जो उस गुड़ की चाय में होती थी।

हमने वो रातें बिताईं जब छत पर पानी छिड़ककर सफेद चादरें बिछाई जाती थीं और सब एक ही पंखे की हवा में सोते थे। वो रातें, जब सूरज की किरणें भी हमें बिस्तर छोड़ने पर मजबूर नहीं कर पाती थीं। लेकिन अब वो दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछाई जातीं, और कूलर और एसी की ठंडी हवा के साथ हम एक बंद कमरे में सिमट गए हैं।

हम वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की सच्चाई और उनकी मिठास को जिया है। आज की पीढ़ी के लिए ये बातें सिर्फ़ कहानियों में बसी हैं, लेकिन हमने इन्हें अपनी ज़िंदगी में महसूस किया है। कोरोना काल में हमने देखा कि कैसे रिश्तेदार एक-दूसरे से डरते हुए दूर खड़े हो जाते थे, और अर्थियों को बिना कंधे के श्मशान जाते हुए देखा है। ये एक ऐसा मंजर था, जो हमारी पीढ़ी के अनुभव का एक और अनचाहा पहलू बन गया।

आज हम वो अनोखी पीढ़ी हैं, जिन्होंने अपने माँ-बाप की बातें मानीं, और अपने बच्चों की भी मान रहे हैं। हम वो लोग हैं, जिन्होंने शादी की पंगत में बैठकर खाना खाया और सब्जी देने वाले को “हिला के देना” कहकर अपनी मर्जी से खाना लिया। वो वक्त अब शायद लौटकर कभी न आए, लेकिन उसकी यादें हमेशा हमारे दिलों में बसी रहेंगी।

दोस्तों, इस पाती के साथ मैं आपको आपके बचपन की उन यादों में फिर से ले जाना चाहता हूँ। उन यादों को फिर से जिएं, उन रिश्तों की गर्माहट को महसूस करें, क्योंकि यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।

यह सफर सिर्फ़ यादों का नहीं, हमारी आत्मा का है।

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टीएमयू एफओई एल्युमिनाई संवाद में किए अनुभव साझा https://madhavexpress.com/?p=43191 https://madhavexpress.com/?p=43191#respond Fri, 04 Oct 2024 19:28:37 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43191 मुरादाबाद (माधव एक्सप्रेस)

तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद के इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग विभाग की ओर से ऑनलाइन एल्युमिनाई टॉक सीरीज में एल्युमिनाई वक्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए। क्लिंग मल्टी सोल्यूशन प्रा. लि. की मैनेजिंग डायरेक्टर एवम् बैच 2009-2013 की एल्युमिना सुश्री आशी रस्तोगी ने छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के रूप में उत्कृष्टता प्राप्त करने और जरूरी कौशल अर्जित करने की सलाह दी। माइक्रोलैंड प्रा. लि. के वरिष्ठ नेटवर्क प्रशासक एवम् बैच 2016-2020 के एल्युमिनस श्री शिवम प्रताप सिंह ने छात्रों को स्वयं पर विश्वास रखने के लिए प्रेरित किया और नेटवर्किंग और क्यूबरनेट्स जैसे कीवर्ड से परिचित कराया। ऑनलाइन एल्युमिनाई टॉक सीरीज में पहले एफओई के निदेशक प्रो. राकेश कुमार द्विवेदी ने महाभारत की एक कहानी के जरिए जीवन में धैर्य के महत्व को बताया।

एरिक्सन में वरिष्ठ अभियंता एवम् बैच 2016-2020 के एल्युमिनस श्री चिन्मय जैन ने प्रमुख प्रोग्रामिंग कौशल के महत्व और लिंक्डइन जैसे प्लेटफार्मों पर नेटवर्किंग के महत्व पर जोर दिया। गीक्सफॉरगीक्स में कार्यरत एवम् बैच 2018-2022 के एल्युमिनस श्री प्रसान जैन ने अनुशासन के महत्व और कुशल पेशेवरों से जुड़ने पर जोर दिया। इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार इंजीनियरिंग विभाग की एचओडी डॉ. अलका वर्मा ने विभाग की उपलब्धियों का संक्षेप में उल्लेख किया और एल्युमिनाई कनेक्शन के महत्व पर प्रकाश डाला। एफओई के एल्युमिनाई समन्वयक श्री प्रशांत कुमार ने अलावा श्री राहुल विश्नोई, श्री नीरज कौशिक आदि शामिल रहे। संचालन बीटेक-ईसी तृतीय वर्ष की छात्रा खुशबू खन्ना ने किया।

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टीएमयू के प्रो. राजुल रस्तोगी ने डॉप्लरकॉन में बताई लीवर कैंसर में इलास्टोग्राफी की उपयोगिता https://madhavexpress.com/?p=43188 https://madhavexpress.com/?p=43188#respond Fri, 04 Oct 2024 19:04:34 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43188 मुरादाबाद (माधव एक्सप्रेस)

मेडिफिलिक की ओर से डॉप्लर अल्ट्रासाउंड इमेजिंग पर आयोजित ऑनलाइन इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस डॉप्लरकॉन-2024 में जाने-माने रेडियोलॉजिस्ट्स ने डॉप्लर अल्ट्रासाउंड के क्षेत्र में आने वाले चैलेंजेज पर अपने-अपने अनुभव साझा किए। डॉप्लरकॉन-2024 में तीर्थंकर महावीर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में रेडियोडॉग्नोसिस विभाग के वरिष्ठ रेडियोलॉजिस्ट प्रो. राजुल रस्तोगी ने रोल ऑफ इलास्टोग्राफी एंड फैट क्वांटिफिकेशन इन हैपटिक इमेजिंग पर व्याख्यान दिया। प्रो. राजुल ने अपने व्याख्यान में विशेष रूप से लीवर कैंसर और बीमारियों की प्रारम्भिक अवस्था में निदान, उपचार और रोकथाम में अल्ट्रासाउंड इलास्टोग्राफी की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने एक नई तकनीक- अल्ट्रासाउंड ड्राइव्ड फैट फ्रैक्शन के महत्व को बताते हुए कहा, इस तकनीक की सहायता से प्रारम्भिक अवस्था में ही फैटी लीवर और नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लीवर डीसीज़ की रोकथाम के संग-संग उपचार में भी सहायता मिलती है। प्रो. राजुल के अलावा मुबंई, दिल्ली, गुरूग्राम, चेन्नई, हैदराबाद समेत यूएसए, बंगलादेश आदि के जाने-माने रेडियोलॉजिस्ट ने भी ऑनलाइन शिरकत की। उल्लेखनीय है, कॉन्फ्रेंस का मुख्य उद्देश्य डॉप्लर अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की सुविधा, पहुंच और अल्ट्रासाउंड की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए ज्ञान का संवर्धन करना रहा। प्रख्यात वक्ताओं के ज्ञान और व्यावहारिक सुझावों ने डॉप्लर अल्ट्रासाउंड अभ्यास और नई अवधारणाओं को सीखने के संग-संग दैनिक जीवन की चुनौतियों को दूर करने के लिए नई अंतर्दृष्टि, टिप्स और ट्रिक्स बताईं।

डॉप्लरकॉन-2024 में मुबंई के डॉ. जुबैर काजी रोल ऑफ पैनाइल डॉप्लर इन इरेक्टाइल डिस्फंगक्शन, हैदराबाद के डॉ. अब्दुल मतीन रोल ऑफ लीवर डॉप्लर इन सीएलडी एंड बड चेरी सिंड्रोम, कोलकाता की डॉ. सुदेशना मालाकर पोस्ट लीवर ट्रांसप्लांट डॉप्लर इवेल्यूएशन, ढाका, बंगलादेश के डॉ. कनू बाला डॉप्लर बेसिक्सः वेवफोर्मस एंड इंटरप्रेटेशन, गुरूग्राम के डॉ. तरून ग्रोवर पैरीफेरल वेनस डॉप्लरः ए सर्जन्स परसपैक्टिव, इंदौर के डॉ. सुधीर गोखले पैरीफेरल आर्टिरिअल डॉप्लर, इंदौर की डॉ. श्वेता नागर प्री एंड पोस्ट ओपी असेसमेंट ऑफ हीमोडाइलेसिस एसेस एवी फिस्चुअल, मुंबई के डॉ. नितिन चौबाल रोल ऑफ डॉप्लर इन रीनोवेसकुलर हाइपरटेंशन, चेन्नई के डॉ. पीएम वेंकट साई कारोटिड एंड वर्टिबरल आर्टिरिअल डॉप्लर इवेल्यूएशन, दिल्ली की डॉ. मंजु विरमानी रोल ऑफ डॉप्लर इन गायनोक्लोजी, दिल्ली के डॉ. अशोक खुराना डॉप्लर इन ऑब्सटेट्रिक्सः ए यूजर्स ओवरव्यू, मुंबई के डॉ. चंदर लुल्ला डुक्टस वेनॉसस एंड यूटेराइन आर्टरी डॉप्लर, दिल्ली के डॉ. अशोक वार्ष्णेय अम्बलिकल आर्टरी एंड एमसीए डॉप्लर इवेल्यूएशन, दिल्ली के डॉ. जतिन कुमार ऑर्टिक इस्थमुस डॉप्लर एंड इट्स रोल इन स्टेगिंग एंड मैनेजमेंट ऑफ एफजीआर, न्यूयॉर्क-यूएसए के डॉ. विक्रम डोगरा पोस्ट रेनल ट्रांसप्लांट डॉप्लर इवेल्यूएशन पर अपने-अपने अनुभव साझा किए।

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रानी दुर्गावती-जिनकी भीषण ललकार से मुगल भी थर्राते थे https://madhavexpress.com/?p=43185 https://madhavexpress.com/?p=43185#respond Fri, 04 Oct 2024 18:50:26 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43185 ( हितानंद शर्मा  )

मध्य भारत की सुनहरी भूमि पर स्थित कालिंजर के किले में चन्देल वंश में उत्पन्न महारानी दुर्गावती की शौर्य गाथा से पूरा भारत परिचित है। रानी दुर्गावती के शासनकाल में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चारों पुरुषार्थ विद्यमान थे और आकाश-वायु-अग्नि आदि पञ्चमहाभूत सन्तुलित होकर माता वसुन्धरा के संरक्षण व संवर्धन करने को लालायित थे। प्रजा खुशहाल थी और अर्थव्यवस्था समृद्धि की हिलोरें मार रही थी। चन्दन से महात्माओं का अभिनन्दन और मन्दिरों में पुष्पों से प्रभु का वन्दन होता था। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण आज आजादी के अमृतकाल में रानी दुर्गावती के 500वें जन्मदिवस के समय गोंडवाना क्षेत्र में रानी दुर्गावती का जीवनवृत्त बच्चे-बच्चे की मुंहबोली शौर्यगाथा बन चुका है।
नवरात्र में जन्मी (तिथि: 05 अक्टूबर, 1524, स्थान: कालिंजर दुर्ग) रानी को माता भगवती की विशेष अनुकम्पा जानकर ही महाराजा कीरत सिंह ने अपने ज्योतिषाचार्यों से विचार-विमर्श करने के पश्चात् उस कन्या का नाम दुर्गावती रखा था, जो खेलने-कूदने की अल्पायु में ही शस्त्रास्त्रों में अपनी रुचि देखने लगी थी। इस सन्दर्भ में प्रो. चित्रभूषण श्रीवास्तव जी की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करने योग्य हैं –“पन्द्रह सौ चौबीस में जन्मी वो चन्देलों की शान थीं। कालिंजर राजा की बेटी वो इकलौती सन्तान थीं । दुर्गाष्टमी अवतरण दिवस दुर्गा का ही अवतार थीं, थर्राये मुगलों की सेना ऐसी भीषण ललकार थी।”
गोंडवाना रानी के राज्य की विदेशनीति तथा उनके निर्णयों में राज्य की सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता तथा सामाजिक समरसता को सदैव ध्यान में रखा गया था। सम्प्रति, रानी दुर्गावती के 500वें जन्मवर्ष में उनके ये विचार आधुनिक भारतीय लोकतन्त्र के लिए अवश्य ही प्रेरक हैं, क्योंकि जब समूचा विश्व दो गुटों में बंटा हुआ है, तो प्रजा के कल्याण हेतु ऐसे कठिन निर्णय लेने होते हैं, जो राज्य की सम्प्रभुता, अक्षुण्णता और स्वतन्त्रता को ठेस न पहुंचावे। रानी दुर्गावती ने मुगल आक्रान्ता अकबर को उसी की भाषा में प्रत्युत्तर दिया, जबकि वे मुगल सैन्य शक्ति से भली-भाँति परिचित थी। वे अपने राज्य की विदेशनीति और आन्तरिक सुरक्षा हेतु अपनी गुप्तचर संस्था के साथ नियमित रूप से बैठती थीं, जैसाकि वर्तमानकाल में किसी देश का प्रधानमन्त्री अपनी गुप्तचरसंस्था के साथ बैठक करता है और अपनी विदेशनीति व कूटनीति को कार्यान्वित करता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि समसामयिक सन्दर्भ में महारानी दुर्गावती की विदेशनीति विषयक विचार अतिप्रासंगिक हैं।
विख्यात शासिका दुर्गावती ने गोंडवाना राज्य के रामनगर, नयनपुर, कंजरिया, कांजीवाडा, लांजी, धूमा, कतंक, बैहर, डिंगैरी, कोतमा, गाडरवारा, बनखेडी, सोहागपुर, मैहर, गैरतगंज, भेलसा, गंजबसौदा, रायसेन, सिरौंज, भोजपाल, सिहोरा, पनानगर आदि क्षेत्रों में सुव्यस्थित जलापूर्त्ति व जलनिकास हेतु अनेक तालाब, नहर, बावली, कुओं आदि का निर्माण कराया था। तात्कालिक परिस्थिति में यह कार्य निःसन्देह प्रजाकल्याण हेतु सराहनीय प्रयास था, किन्तु सम्प्रति, जब महारानी दुर्गावती का 500वाँ जन्मदिवसवर्ष है, तो जलवायु परिवर्तन के इस काल में तत्सदृश जलापूर्त्ति व निकास व्यवस्था प्रासंगिक सी लगती है। वर्तमान जबलपुर के परिक्षेत्र में यह भी प्रसिद्ध है कि इस क्षेत्र में लोककल्याणार्थ रानी ने 52 तालाबों का निर्माण कराया था। जिससे वर्षा के जल का संरक्षण और भू-जल की आपूर्त्ति सुनिश्चित हो सके। इस समय, सकल विश्व स्वच्छ जल की उपलब्धता हेतु संघर्षरत है, जल बचाने की बातें प्रतिदिन हम सोशल मीडिया के माध्यम से देखते हैं, ऐसे में महारानी दुर्गावती के जलापूर्त्ति सम्बन्धी विचार और भारत के विविध क्षेत्रों में नहर, तालाब, कुओं आदि का निर्माण समृद्ध भारत के पुनर्निर्माण (आजादी के अमृतकाल) में निश्चित ही प्रेरक सिद्ध होंगे।
महारानी दुर्गावती ने धार्मिक समन्वय स्थापित करने हेतु भी अनेक सफल प्रयास किये थे, जिसके कारण विविध मताबलम्वियों में परस्पर गतिरोध न होते हुए समन्वय स्थापित हुआ था। महारानी दुर्गावती अपने धर्म के प्रति भी पूर्णरूपेण समर्पित रहती थीं। उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं के विभिन्न मन्दिरों का निर्माण कराया था और अनेक मन्दिरों में प्रभु श्रीराम, भद्रकाली, विष्णु भगवान् आदि देवताओं की प्रतिमा स्थापित कर धार्मिक सद्भावना का सन्देश दिया था। इस सम्बन्ध में प्रख्यात “महारानी दुर्गावती” नामक ग्रन्थ उल्लेखनीय है, जिसमें रानी दुर्गावती द्वारा निर्देशित बीरबल द्वारा शैक्षणिक कार्य, गोदान, अन्नदान, मन्दिरों व विद्यालयों के निमित्त भूदान आदि का वर्णन है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, जब एक ओर कट्टरवादी ताकतें गिद्धमुख किये भारतीय संस्कृति को निहार रही हैं, तो दूसरी ओर भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र “समन्वय और समरसता” की भावना द्वारा इनको परास्त करना अत्यावश्यक है, जोकि महारानी की राजनीति में दृष्टिगोचर होता था। क्योंकि किसी देश की महानता और उसकी समृद्धि में समाज के प्रत्येक वर्ग का सहयोग अपेक्षित होता है और सभी के समन्वय व सहयोग से ही कोई राष्ट्र उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त होता है।
रानी दुर्गावती मात्र अधिकारियों के द्वारा प्रदत्त जानकारी पर आश्रित होकर प्रजा को शासित नहीं करती थीं, अपितु वे अपना वेश बदलकर जनता की नब्ज टटोलती थीं। वे सामान्य प्रजा के मध्य जाकर उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में आने वाली चुनौतियों को प्रजा के द्वारा ही सुनती थी और उन चुनौतियों का तत्काल अथवा राजदरबार के माध्यम से निवारण किया करती थीं। जैसाकि एक शासक को अपन गुप्तचरों के माध्यम से ऐसा करना चाहिए, या स्वयं ही औचक निरीक्षण के माध्यम से सत्य का ज्ञान करना चाहिए।( लेखक-भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश के प्रदेश संगठन महामंत्री हैं)

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थाेड़े भी मर्यादा पुरुषाेत्तम जैसे हाे जाएं, ताे दुनिया ख़ूबसूरत हाे जाए https://madhavexpress.com/?p=43181 https://madhavexpress.com/?p=43181#respond Fri, 04 Oct 2024 18:35:39 +0000 https://madhavexpress.com/?p=43181 – दिनेश ‘दर्द’

राम का त्याग, समर्पण और अपनत्व का भाव ही उन्हें मर्यादा पुरुषाेत्तम बनाता है. राम सिखाते हैं कि कैसे पिता का वचन निभाने के लिए हंसते-हंसते वन-गमन किया जा सकता है. कैसे केवट, जटायु और शबरी जैसाें काे प्रेम किया जा सकता है. राम इसलिए भी मर्यादा पुरुषाेत्तम हैं क्याेंकि वाे ज्ञान-प्राप्ति के लिए लक्ष्मण काे मृत्यु-शैय्या पर पड़े अपने दुश्मन रावण के पास भेजते हैं. कुल मिलाकर मर्यादा पुरुषाेत्तम राम इतने बड़े हैं कि हम उनके जैसे थाेड़े भी हाे जाएं, ताे ये दुनिया बहुत ख़ूबसूरत हाे जाएगी.

मशहूर शायर और गीतकार शकील आज़मी ने ख़ास गुफ़्तगू के दाैरान मर्यादा पुरुषाेत्तम श्रीराम के रंग में सराबाेर हाेकर अपनी ज़िंदगी में आए उतार-चढ़ाव के साथ-साथ ‘बनवास’ काे लेकर उनकी ज़िंदगी में आए बदलाव काे लेकर भी चर्चा की.

1984 में महज़ 13 की उम्र में लिक्खी अपनी पहली ग़ज़ल का शे‘र कहते हुए उन्हाेंने अपने ‘गाॅड गिफ्टेड’ शायर हाेने का तआरुफ़ करवाया. उन्हाेंने पढ़ा कि-

ख़ून से है क्यूं भीगा, जिस्म ये शकील अपना,
ज़ख़्म क्यूं मैं खाया हूं, पत्थराें काे मालूम है.

शायरी के लिए बुनियादी दु:ख हाेना ज़रूरी
शकील ने बताया कि, शायर बनाए नहीं जाते, बल्कि पैदा हाेते हैं. शायर हाेने के लिए एक बुनियादी दु:ख हाेना ज़रूरी है, जाे किसी अपने का ही दिया हुआ हाे. बचपन में ही मां काे खाे चुके शकील की ज़िंदगी में दु:खाें की यही पहली दस्तक थी, जिसने बाद में सिलसिले की शक़्ल इख़्तियार कर ली. दूसरी शादी के बाद वालिद की ठाेकर ने उन्हें ननिहाल (सहरिया, जिला आज़मगढ़) पहुंचा दिया. ननिहाल में भी हालात कुछ साज़गार नहीं रहे.

मुंबई पहुंच कर मैंने कश्ती ताेड़ दी अपनी
उम्र की सीढ़ी पर चढ़ते हुए कुछ बनने से पहले पेट पालने की जुस्तजू में गुजरात का रुख़ किया. पहले भरूच, फिर बड़ाैदा, फिर सूरत. सूरत में 13-14 साल गुज़ारे. मगर शायरी बदस्तूर जारी रही. यहीं से उन्हें मुंबई के लिए बुलावा आ गया और शकील आज़मी फरवरी-2001 में मुंबई पहुंच गए. इसके बाद उन्हाेंने अपनी कश्ती ताेड़ दी और अहद कर लिया कि, अब जीना भी यहीं और मरना भी यहीं.

एक टुकड़ा धूप है पसंदीदा गाना
2004 में पहली फिल्म मिली ‘वाे तेरा नाम था’. ख़ुद के पसंदीदा गीताें में उन्हें एक टुकड़ा धूप (थप्पड़) पसंद है. जावेद अख़्तर, गुलज़ार के अलावा अमिताभ भट्टाचार्य, इरशाद कामिल और सईद कादरी उनके पसंदीदा गीतकार हैं. आइटम नंबर उन्हें कुमार के भाते हैं. शायराें में मीर, ग़ालिब, निदा फ़ाज़ली, बशीर बद्र और माेहम्मद अलवी उनकी पसंद रहे. वहीं माैजूद मंच पर उन्हें फ़रहत एहसास, आलम खुर्शीद, नाेमान शाैक़, अकरम नक्काश की शायरी उन्हें लुभाती है.

शायरी लिखते-लिखते ‘बनवास’ का ख़याल कैसे आया. इस सवाल पर उन्हाेंने बताया कि, दरअसल वाे कुदरत पसंद शख़्स हैं और जंगल पर कुछ लिखना चाह रहे थे. पहली ही ग़ज़ल लिक्खी-

मैं हूं इंसान ताे हाेने का पता दे जंगल,
राम जैसे थे मुझे वैसा बना दे जंगल.

राे पड़ा था ‘उर्मिला’ और ‘अहिल्या’ लिखते-लिखते
राम के नाम पर लिखी इस ग़ज़ल के बाद भी ज़ेहन में ‘बनवास’ कहीं नहीं थी. इसके बाद ‘उर्मिला’ के किरदार के बारे में जाना और सबसे पहली नज़्म लिखी उर्मिला. फिर ‘अहिल्या’ नाम के पात्र के बारे में पता चला, ताे उनका अध्ययन कर इस उनवान से एक नज़्म लिख दी. इसके बाद जी में आया कि सभी पात्राें पर नज़्में लिखूं. इसके बाद मैंने सभी पात्राें पर नज़्में लिखीं और ‘बनवास’ तैयार हुई. ‘उर्मिला’ और ‘अहिल्या’ लिखते हुए आंसुओं ने भी गवाही दी.

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