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शिव, भारतीय मनोरचना की एक अप्रतिम उपस्थिति हैं। कृष्ण की तरह उनके भी अनेक चित्र-विचित्र संस्मरण हैं। कृष्ण साकार हैं और हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में बहुत सरस तरह से शामिल होते हुए भी जैसे सच्चे योमेश्वर की तरह हमें अतिक्रांत करते हैं, शिव, लिंग रूप से निष्फल और अराम रहते हुए भी ‘नानाभूतरत:’ और ‘गुणाकर’ हैं, जैसा कि शिवसहस्त्रनाम स्त्रोत में बताया गया है। एक राग से योग की यात्रा तय करता है, दूसरा योग से राग की। लेकिन उनकी यात्रा के अनगिनत प्रसंगों से भारतीय स्मृति लगातार रंजित रही है, लगातार सस्पन्द।
ऐसे शिव को पशुपति के रूप में याद करना, मंदसौर के प्रख्यात मंदिर के तात्कालिक सन्दर्भ में,थोड़ी अलहदा बात है। आधुनिक कविता के अति-तार्किक स्वभाव में भी शायद यह फिट नहीं बैठता। डॉ. नगेन्द्र ने संभवत: मीरा और महादेवी की तुलना के प्रसंग में कहीं कहा है कि वह तन्मयता आधुनिक मानसिकता से कदाचित असंगत है। लेकिन हमारे ही समय में नरेश मेहता ने यह दिखाया कि आज के दौर में भक्ति किस तरह स्वयं को विश्वसनीय बनाते हुए चरितार्थ हो सकती है।
महाकाल, काल के बन्धनों, सीमाओं और आग्रहों से मुक्त निरपेक्ष है। पशुपति मंदसौर मेरी सीमित धारणा में एक प्रणव लिंग है और उज्जैन के ज्योतिर्लिंग महाकाल से उनकी विशेषता भी इसी जगह स्थापित होती है। यह ‘आलोक’ और ‘ध्वनि’ का फर्क है। महाकाल दृष्टि है, पशुपति दर्शन। महाकाल दर्शन-मात्र से मोक्ष प्रदान करते हैं, पशुपति समझने से। महाकाल संवेदना का शुद्ध पावित्र्य है, पशुपति अनुभूति का गुरु-गांभीर्य। पशुपति सिर्फ फैलस नहीं हैं, फिलासफी हैं। लेकिन इस वैशेष्य और माहात्म्य को रेखांकित करना जरूरी है।
पशुपति दशपुर जनपद की लोक स्थानीय चेतना में अत्यन्त पुरातन समय के नित्यतीर्थ हैं। अभिज्ञान शाकुन्तलम् में महाकवि कालिदास ने इन अष्टमूर्ति को यों प्रणाम किया है-
या सृष्टि: स्रष्टुराद्या वहति विधिहुंत या हविर्या च होत्री।
या द्वे कालं विधत: श्रुति विषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्॥
या माहु: सर्व बीज प्रकृतिरिति यथा प्राणिन: प्राणवन्त:।
प्रत्यक्षामि: प्रसन्नस्तनुभिखतु वस्ताभिरष्टाभिरीश:॥
(विधाता की आद्यसृष्टि (जलमूर्ति), विधिपूर्वक हव्य को ले जाने वाली (अग्निमूर्ति), होत्री (यजमान मूर्ति), दिन-रात की कत्र्री (सूर्य-चंद्र मूर्तियां), सब बीजों की प्रकृति (पृथिवी मूति) और प्राणियों के प्राणस्वरूप (वायुमूर्ति)। इन सब प्रत्यक्ष अपनी अष्टमूर्तियों से भगवान महेश्वर आप पर प्रसन्न हों।
मालविकाग्निमित्र, कुमारसंभव और रघुवंश में भी कालिदास इन अष्टमूर्ति भगवान के समक्ष प्रणत हुए हैं-
विदितं वो यथास्वार्था न मे काश्चित्प्रवृत्तय:।
ननुमूर्तिभिरिष्टाभित्थं भूतोडास्मि सूचित:॥
कुमारसंभव के इस श्लोक में कालिदास अपना इरादा स्पष्ट करते हैं कि वेदान्त प्रतिपादित ब्रह्मï को जनसामान्य के लिए सहज सुलभ बनाने के लिहाज से अष्टप्रकृति (अधिष्ठान) को ही अष्टमूर्ति (शिव) के रूप में प्रतिष्ठित किया। ‘रघुवंश’ में ‘अवेहि मां किकरमष्टमूर्ते:’ (तुम मुझे अष्टमूर्ति का किंकर जानो) की आत्म-स्वीकृति हालांकि कुंभोदर नामक एक गण के नाम से की गई है, लेकिन उसमें आत्मा और स्वर स्वयं कालिदास का लगता है। चूंकि पशुपति की इस प्रतिमा का निर्माण काल 533 ई. के आसपास हुआ विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है, इसलिए यह संभव है कि कवि कालिदास की प्रेरणा उनकी अत्यन्त प्रिय नगरी दशपुर के इस भव्य विग्रह की संकल्पना में सरसित रही हो। पशुपति की प्रतिमा का निर्माण काल और सम्राट यशोधर्मन की हूणों पर विजय, आस-पास घटी घटनाएं हैं। दशपुर का यह सम्राट जिसने ‘स्थाणु’ ‘शूलपाणि’ के अलावा किसी के समक्ष सिर नहीं झुकाया, संभव है कि पशुपति की मूर्ति का प्रथम उद्भास इसी के समक्ष हुआ हो।
मंदसौर के पशुपति तुलना-तर्क से अनायास ही नेपाल के पशुपति की याद दिलाते हैं। उनके ‘चतुर्मुख’ की तुलना में ये ‘अष्टमूर्ति’ हैं। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में शिव को चतुर्मुख कहा गया है किंतु ‘अष्टमूर्ति’ एक अलग किस्म की दार्शनिक संकल्पना है जो मुख की अनेकता के गणित से भिन्न है। अष्टरुद्रों की परम्परा-प्रामाणिकता सिद्ध है। शतपथ पुराण,वायु, स्कन्द, पद्म सृष्टि विष्णु, मार्कंडेय, शिव, (शतरुद्रसंहिता,) शिवमहिम्न: स्तोत्र, में भी यही अवधारणा प्रचलित रही है। जब श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ‘प्रकृतिरष्टधा’ का विवेचन किया-
भूमिरापोकनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं में भिन्ना प्रकृतिरष्टधा॥
या जब शिवपुराण में
शर्वो भवस्तथा रुद्र उग्रो भीम: पशुपति:।
ईशानश्च महादेव: मूर्तयश्चाष्ट विश्रुता:॥
तो भी भारतीय जीवन में प्रथित आठ की रहस्यमय संख्या का ही आलोक हुआ था। मुझे महत्वपूर्ण यह लगता है कि पशुपति का शिल्पी अपनी कल्पना का रसायन जब तैयार करने बैठा तो उसने एक से अधिक अर्थच्छवियों का घोल विकसित किया। इसलिए अष्ट प्रकृति और अष्टमृर्ति का तादात्म्य तो यहां भी वैसे ही मिलता है जैसे शिवपुराण में-
‘चराचरात्मक विश्वं धत्तै: विश्वं भरात्मिका।
शार्वीं शर्वाहृया मूर्तिरिति शास्त्रस्य निश्चय:॥
संजीवनं समस्मस्य जगत: सलिलात्मिका।
भावीति गीयते मूर्तिर्भवस्य परमात्मन:॥
वहिरंतर्गताद्विश्वं व्याप्य तेजोमयी शुभा।
रौद्रीरुद्रस्य या मूर्तिरास्थिता घोररुपिणा॥
स्पदयत्यनिलात्मेद बिभर्ति स्पदते स्वयम्।
औग्रीति कथ्यते सद्भिमूर्तिरुपस्य वेधस:॥
सर्वावकाशदा सर्वव्यापिका गगनात्मिका।
मूर्तिर्भीमस्य भीमाख्या भूतवन्दस्य भेदिका॥
सर्वात्मनाधिष्टात्री सर्वक्षेत्रनिवासिनी।
मूर्ति: पशुपतेज्र्ञेया पाशुपाशनिकृन्तनी॥
दीपयन्ती जगत्सर्व दिवाकरसमाहृया।
ईशानाख्या महेशस्त मूर्तिर्दिवि विसर्पतिं॥
आप्याययति यो विश्वममृतांशुर्निशाकर:।
महादेवस्य सा मूर्तिर्महादेवसमाहृवया॥
आत्मा तस्याष्टमी मूर्ति: शिवस्य परमात्मन:।
व्यापिकेतरमूर्तीना विश्वं तस्माच्छिवात्मकम्॥‘
(चराचरात्मक विश्व को यह पृथ्वी धारण करती है। शास्त्र का निर्णय है कि यह शिवात्मक मूर्ति है। इस संपूर्ण विश्व का जीवन जलात्मक है, शिव की मूर्ति भावी कही जाती है। बाह्यïाभ्यन्तर विश्व को व्याप्त कर उसकी तेजोमयी शुभ मूर्ति तथा घोर रूप रौद्र मूर्ति है। संपूर्ण विश्व का स्पन्दन करने वाली वायु इसका भरण-पोषण करती है और उसकी मूर्ति उग्र कहलाती है। उनकी आकाशात्मक मूर्ति सबको अवकाश देने वाली है तथा सब प्राणियों को भयदायक भीममूर्ति है, जो सब क्षेत्रवासियों के अन्त: करण में सर्वात्म रूप में स्थित है, वह पशुपति मूर्ति सब जीवों के पाश को काटने वाली है। सूर्य रूप से वे संपूर्ण विश्व को प्रकाशित करते हैं, ईशान नामक शिव मूर्ति स्वर्ग में चलने वाली है। विश्व को अपनी चांदनी से तृप्त करने वाली उनकी चंद्र मूर्ति है, वह महादेव संज्ञा वाली है। शिव की व्यापक मूर्ति इनमें आठवीं है, यह इतर मूर्ति से अधिक व्यापक होने के कारण शिवात्मक है।)
इसके साथ-साथ दूसरे अर्थों के भी ढ़ेरों शेड्स इस महिमा-मूर्ति में झांकते मिलते हैं। आठ रसों के आठ स्थायी भाव इसमें आचार्य भरत के रस शास्त्र का स्मरण दिलाते हैं तो ऊपर के चार मुख जीवन की चार अवस्थाओं का और नीचे के चार मुख चार फलों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का। शिव की बाल अवस्था की मूर्ति ने मुझे चकित किया क्योंकि उसमें विष्णु का प्रतीक मोरपंख लगा था लेकिन तब मेरे हृदय में अकस्मात शिव-पूजा के समय दोहराए जाने वाले शिव के आठ नाम गूंजे जो वायवीय संहिता के अन्तर्गत वर्णित हैं और जिनमें एक नाम विष्णु है। एक नाम पितामह जो तत्काल शिव की वृद्ध मूर्ति से समीकृत हो जाता है। इसी तरह से वीर शैव सम्प्रदाय के आठ प्रमुख साधन, आठ आवरण भी इन अष्टमूर्तियों से समीकृत होते हैं और पितामह यहां ‘गुरु’ बन जाते हैं।
इस शिल्पी की प्रतिभा को जितना प्रणाम किया जाए, कम है किंतु उदाजी नामक उस धोबी का भाग्य भी किसी न किसी दिव्य अर्थ से संवलित है, जिसको वर्षों शिवना के गर्भ में गुप्त यह मूर्ति सर्वप्रथम प्रत्यक्ष हुई। मुझे ऐसा लगता रहा है कि सूर्य मंदिर (कोणार्क), सोमनाथ (चंद्र), नेपाल के पशुपतिनाथ (यजमान), शिवकांची का एकाम्रेश्वर क्षितिलिंग, त्रिचनापल्ली का जुम्बुकेश्वर आपलिंग (जल), तिरुवण्णमल्लै या अरुणाचल का तेजोल्लिंग, उत्तर-आर्कट का काल हस्तीश्वर वायुलिंग और चिदम्बरम् का आकाशलिंग। इन सभी आठ शिव मंदिरों की एकत्र स्मृति मंदसौर के पशुपति हैं और यह मंदिर इस तरह प्रकारान्तर से उस राष्ट्रीय और सांस्कृतिक समरसता का प्रतीक है, जिसके कारण भारत की विविधता में एकता के दर्शन होते हैं।
यह ध्यान रखने की बात है कि चाहे ‘अष्टों कला: समाख्याता अकारे सद्यजा: शिवे’ के रूप में शिव की आठ कलाओं की बात हो या ‘दलाष्टकमिहोच्यते’ के रूप में अष्ट दल कमल की यौगिक-तांत्रिक बात हो, यह अष्टमूर्ति प्रतिमा-विज्ञान और सीमांतिकी (सीमेटिक्स) के समन्वय का अद्भूत दृष्टान्त है। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इन आठ रूपों की भाव-व्यंजना वेदों में अग्नि के आठ रूपों से मानी है। आठ रूप आठ वसु हैं, जिनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण (तान्येतानि अष्टों अग्निरुपाणि) तथा सांख्यायन सूत्र में किया गया है। (अष्टमूर्ति शिव महादेव द ग्रेट गॉड शिव, वाराणसी 1966) पशुपति का शिल्पकार इस समृद्ध दार्शनिक कोष का पूरा-पूरा उपयोग करता प्रतीत होता है। इसलिए तक्षण, रेखांकन, उत्कीर्णन, अनुरेखण का एक-एक बिन्दु, घुमाव, रेखा, लिप्यंकन यहां किसी न किसी नए रहस्योद्घाटन की ओर आपको धकेलता है। मसलन शिव के ‘कैशोर्य’ रूप में विषधर (सर्प) और सुधाधर (चंद्रमा) का साथ-साथ होना।
मुझे इस बात ने अक्सर चकित किया है कि इन अष्टमूर्ति भगवान को ‘पशुपति’ के नाम से ही मंदसौर में जाना गया जबकि पशुपति नाम उनकी आठ मूर्तियों में से एक है। वह एक रूप मात्र है। लेकिन तब मुझे याद आया कि पशुपति हमारी सभ्यता में शिव की प्रथमतम आकृति और अभिव्यक्ति के रूप में मान्य हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता की एक आकृति में पशुपति ढेर सारे जानवरों से घिरे बैठे हैं। ‘इंडियन आइकोनोग्राफी’ के लेखक डॉ. द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल ने यह भी लिखा-
‘शैव-संप्रदाय के अनेक अवांतर भेद हैं। उनकी दार्शनिक दृष्टि भी भिन्न है। संक्षेप में शैव-धर्म के सामान्य तीन सिद्धांत हैं जो ‘पकार’ से प्रारंभ होते हैं-पशु, पाश और पति।‘
‘पशुपति’ और ‘भूतेश’ इस तरह से शिव की सर्वाधिक लोकप्रिय ‘इमेज’ सिद्ध होते हैं। ऋग्वैदिक ‘पशुप’ भी पशुपति ही है। लेकिन इन सबके पीछे मुझे लगता है कि द्विपद और चतुष्पद से-जीव से- शिव की अनन्यता स्थापित करना ही सबसे महत्व की वस्तु है। इसलिए शिव पुराण की साक्षी हैं-
देहिनो यस्य कस्यापि क्रियते यदि निग्रह।
अनिष्टमष्टमूर्ते स्तत्कृतमेव न संशय:॥
कि किसी भी देहधारी का निग्रह करना, शिव की अष्टमूर्ति का ही निग्रह करना है और यह भी कि-
अष्टमूत्र्यात्मना विश्वमधिष्टाय स्थितंशिवम्।
भजस्व सर्वभावेन रुद्रं परमकाहणम्॥
यानी अष्टमूर्ति से संपूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हुए परम कारण रूप भगवान शिव का सर्वभाव से भजन करना ही श्रेयस्कर है। फिर वायवीय संहिता में पाशुपत सिद्धांत के अंतर्गत ही ‘नामाष्टकमय योग’ बताया गया है जिसके द्वारा सहसा ‘शैवी प्रज्ञा’ का उदय होता है। इसमें ‘भावना द्वारा नाभि में आठ आहुतियों का हवन करके पूर्णाहुति एवं नमस्कारपूर्वक आठ फूल चढ़ाकर अंतिम अर्चना पूरी कर अंजलि में लिए हुए जल की भांति अपने आपको शिव के चरणों में समर्पित करने) का निर्देश है। इसमें अध्र्य भी अष्टांग बताया गया है। यह ‘पाशुपत’ नाम दर्शन था कि अस्त्र या दोनों, यह आज भी वैसे ही निर्धारित होगा जबकि यह मूर्ति सकल है या अकल या दोनों निर्धारित की जाती रही है। पाशुपत दर्शन के ‘आठ प्रतिपाद्य’ का उल्लेख सर्वदर्शन संग्रह में है- लाभ, मल, उपाय, देश, अवस्था, विशुद्धि, दीक्षा और बल। पशुपति की यह मूर्ति इस कारण यदि इस नाम से अलंकृत हुई तो यह संयोग वृथा नहीं था, ईश्वरेच्छा ही थी।
कृष्ण और शिव दोनों ने ही दार्शनिक और वैचारिक स्तर पर भारतीय मनीषा को अत्यन्त व्यस्त और विन्यस्त किया है।
इसका अर्थ यह नहीं कि वे भारतीय रागात्मकता और हार्दिकता के अधिष्ठान नहीं रहे हैं। मुझे तो यह लगता है कि एक तरफ जैसे गोपियां कृष्णातुर हुई जाती थीं, वैसे ही वामन पुराण, कूर्मपुराण, स्कन्द पुराण, लिंग-पुराण, शिव-पुराण और पद्म-पुराण में ऋषि-पत्नियों का शिव पर न्यौछावर और मोहित हुआ जाना भी शिव के उसी ‘मैचो’ रूप का स्वीकार है। कृष्ण पुरुष की कल्चर्ड सौम्य अपील और शिव उसी की आदिम पुरुष फक्कड़ अपील के रूप में हिन्दुस्तानी हृदय को विमोहित करते रहे हैं। इसलिए मैं शिव-पूजा में रागात्मकता को विशेष अवधान के साथ अंकित करता रहा हूं।
पशुपति निश्चय ही दशपुर की इन ललनाओं में अनादि से लोकप्रिय रहे होंगे, जिसके बारे में कालिदास ने मेघदूत में अपने यक्ष को बताया है। दरअसल संस्कृति के प्रमाण सामान्यत: और निर्विशेषता, निर्वेयक्तिकता और लोकाचार में भी उतने ही हैं जितने अपवादात्मक देव-व्यक्तियों में। संस्कृति भादों की एकादशी के वक्त बहन द्वारा भाई के सोच भरे ललाट पर लगे रोली के टीके में उतनी ही फूट-फूट पड़ती है, जितनी कि तब जब भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर से बाहर निकलती हुई मालव कन्याओं के हाथ से प्रसाद बंटता है। वह मूर्ति जितनी संस्कृति है, ये मनुष्य इनकी हाजिरी भी उतनी ही संस्कृति है। पशुपति पर जो जन-आस्था है वह बताती है कि यह प्रतिमा उत्तरगुप्तकालीन एक ऐतिहासिक घटना नहीं है, वह घटना तो इतनी सारी जनता के बीच पल-पल हो रही है, पल-पल घट रही है।
(लेखक मध्यप्रदेश के पूर्व वरिष्ठ आई.ए. एस अधिकारी हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवा निवृत्त हुए हैं वह पूर्व मंदसौर कलेक्टर के पद पर भी कार्यरत रह चुके हैं)
]]>गृह मंत्री अमित शाह ने भी लोकसभा में पिछले सप्ताह कहा था कि वह संसद में मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए तैयार हैं। ठाकुर ने कहा, ‘‘मैं विपक्ष से अनुरोध करना चाहूंगा कि कृपया सदन में आएं और चर्चा में भाग लें। वे जो भी मुद्दा उठाना चाहें, सरकार चर्चा के लिए तैयार है। विपक्ष की ऐसी क्या विवशता है जो वे चर्चा से भाग रहे हैं?” उन्होंने दावा किया कि विपक्ष सदन से ‘‘भागने” के मौके ढूंढता रहता है। ठाकुर ने कहा, ‘‘वे केवल भागने में विश्वास रखते हैं, चर्चा में भाग लेने में नहीं। वे खबरों में बने रहना चाहते हैं, किंतु चर्चा में भाग नहीं लेते हैं। यह स्पष्ट है कि वे चुनाव वर्ष में राजनीति कर रहे हैं। ”
]]>पुलिस के मुताबिक, उसके सहयोगी और चचेरे भाई अनमोल बिश्नोई को साल 2022 में केन्या में हिरासत में लिया गया था, लेकिन उसे कथित तौर पर इस साल अमेरिका में पंजाबी सिंगर करण औजला और शैरी मान के साथ पार्टी करते देखा गया था।
गौरतलब है कि पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की 29 मई, 2022 को पंजाब के मनसा जिले के एक गांव में हमलावरों के एक गैंग ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर हत्या कर दी थी। जिसकी जिम्मेदारी कनाडा में बैठे गोल्डी बरार ने ली थी।
]]>ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी (BCAS) सोमवार से एविएशन सिक्योरिटी कल्चर वीक (विमानन सुरक्षा संस्कृति सप्ताह) मना रहा है। मंगलवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीसीएएस को एविएशन सिक्योरिटी कल्चर वीक के अवसर पर बधाई दी। अमित शाह ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ‘सप्ताह भर चलने वाला उत्सव, हमारे विमानन प्रतिष्ठानों को पहले से अधिक सुरक्षित बनाए।’
सुरक्षा के प्रति जागरुकता लाने के लिए किया जा रहा आयोजन
बता दें कि विमानन सुरक्षा संस्कृति सप्ताह का आयोजन करने वाली संस्था ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्योरिटी, भारत में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू हवाई अड्डों पर नागरिक उड़ानों की सुरक्षा से संबंधित मानकों और उपायों को निर्धारित करने का काम करती है। सिविल एविएशन कल्चर वीक का आयोजन आम लोगों को हवाई अड्डों की सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरुक करने के उद्देश्य किया जा रहा है।
भारतीय एयरपोर्ट्स पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम
इस कल्चर वीक के लिए बीसीएएस ने ‘इसे देखें, बताएं और सुरक्षित रहें’ को अपनी टैगलाइन बनाया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत के 131 एयरपोर्ट्स से रोजाना 10 लाख लोग सफर करते हैं। सुरक्षा के लिए इन एयरपोर्ट्स पर सिक्योरिटी चेक के लिए 11 हजार स्क्रीन्स लगी हुई हैं जो रोजाना 5 लाख हवाई यात्रियों और नौ लाख बैग्स को स्कैन करती हैं। देश के एयरपोर्ट्स पर करीब 600 बैगेज एक्सरे मशीन और एक हजार दरवाजे के आकार वाले मेटल डिटेक्टर लगे हैं।
महाराष्ट्र में एक भीषण हादसा हो गया। हादसे में 17 लोगों की मौत हो गई। घटना मुंबई के पास ठाणे जिले की है। मौके पर एनडीआरएफ पहुंच गई है। पुलिस ने बताया कि घायलों को अस्पताल पहुंचा दिया गया है, जहां उनका इलाज जारी है। इस घटना पर पीएम नरेंद्र मोदी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शोक जताते हुए मुआवजे का एलान किया है।
यह है पूरा मामला
शाहपुर पुलिस ने बताया कि समृद्धि एक्सप्रेस हाईवे के तीसरे चरण का निर्माण किया जा रहा था। इसी दौरान शाहपुर के पास मंगलवार तड़के एक गर्डर लॉन्चिंग मशीन गिर गई, जिसकी चपेट में आने से 17 लोगों की मौत हो गई। जबकि, तीन लोग घायल हैं।
पीएमओ ने किया मुआवजे का एलान
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी एक ट्वीट में मोदी ने कहा, ‘‘महाराष्ट्र में हुआ हादसा अत्यंत पीड़ादायक है। इसमें जिन लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है, उनके प्रति मैं अपनी शोक-संवेदना व्यक्त करता हूं। घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं।’’ पीएमओ ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से इस दुर्घटना के प्रत्येक मृतक के निकटस्थ परिजन को दो-दो लाख रुपये और घायलों को 50-50 हजार रुपये की अनुग्रह राशि दी जाएगी।’’
दूसरी तरफ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी इस घटना पर शोक जताया। उन्होंने कहा, “यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। मृतकों के परिजनों को 5 लाख रुपए की अनुग्रह राशि दी जाएगी। यहां स्विट्जरलैंड की एक कंपनी काम कर रही थी। इसकी गहन जांच के निर्देश दिए गए हैं। NDRF की टीम मौके पर पहुंच गई है और बचाव कार्य के निर्देश दिए हैं। हमारे संबंधित विभाग के अधिकारी और मंत्री भी मौके पर मौजूद हैं।”
खाली किया जा रहा है घटनास्थल
पुलिस ने बताया कि एंबुलेंस और रहवासियों की मदद से घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया है। वहीं, पोस्टमॉर्टम के लिए मृतकों के शवों को भी अस्पताल भिजवाया है। जेसीबी और रेस्क्यू टीम ने मोर्चा संभाल लिया है। घटनास्थल को खाली किया जा रहा है।
छह लोगों के फंसे होने की आशंका
एनडीआरएफ के एक अधिकारी ने बताया कि ठाणे जिले के शाहपुर तहसील में एक पुल के स्लैब पर क्रेन गिर गई थी। एनडीआरएफ की दो टीमें मौके पर पहुंच चुकी हैं। अबतक 14 शवों को बरामद कर लिया गया है। वहीं तीन लोग घायल हैं। आशंका है कि अभी भी छह लोग गर्डर के नीचे फंसे हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में यौन उत्पीड़न की पीड़ित और निर्वस्त्र कर घुमाई गई महिलाओं के वायरल वीडियो मामले में सीबीआई को निर्देश दिया कि एजेंसी उनके बयान दर्ज न करे। सर्वोच्च न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि कोर्ट इस मामले पर दोपहर दो बजे सुनवाई करेगा।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने महिलाओं की ओर से पेश हुए वकील निजाम पाशा के आवेदन पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि महिलाओं को आज दिन में सीबीआई के सामने बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया है। हालांकि, केंद्र और मणिपुर सरकार की ओर से पेश हुए वकील एसजी तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
]]>सक्षम वित्तीय साक्षरता परियोजना का मुख्य उद्देश्य हाशिए पर पड़ी महिलाओं व बालिकाओं को मूलभूत वित्तीय शिक्षा प्रदान करते हुए वित्तीय निर्णयों के बारे में जानकार के तौर पर सक्षम बनाना है। सक्षम परियोजना के तहत करीब 30000 महिलाओं (इनमें छात्राएं, गृहणियां, घरेलू कामगार महिलाएं व दैनिक वेतनभोगी महिलाएं शामिल थीं) को देश के उत्तरी (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली एनसीआर), पश्चिमी (महाराष्ट्र) व पूर्वी (बिहार, पश्चिम बंगाल) क्षेत्रों में 605 वित्तीय साक्षरता वर्कशाप्स के जरिए कवर किया गया। जैसा कि सक्षम परियोजना में 30 फीसदी छात्राएं शामिल थी तो इसे 2020 से लागू नई शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम में आने का भी लाभ मिला है।
सक्षम परियोजना की सफलता पर बोलते हुए होम क्रेडिट इंडिया के मुख्य विपणन अधिकारी, आशीष तिवारी ने कहा, “भारत में और वैश्विक स्तर पर वित्तीय साक्षरता सामान्य साक्षरता से बहुत पीछे है और महिलाओं में तो ये न्यनतम स्तर पर है। होम क्रेडिट इंडिया के लिए वित्तीय साक्षरता ईएसजी के प्रमुख स्तंभों में से एक है और हम समाज में एक उत्तरदायी ऋण लेने वाली संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए वित्तीय व डिजिटल साक्षरता को प्रोत्साहित करते हुए इस पर काम कर रहे हैं। हमें इंडियन डेवलमेंट फाउंडेशन की सहभागिता के साथ सक्षम परियोजना का पहला चरण पूरा करते हुए प्रसन्नता हो रही है और यह हमारे समाज में हाशिए की महिलाओं को सशक्त व सक्षम बनाने की बस एक शुरुआत है जो उन्हें वित्तीय कौशलयुक्त करते हुए उनमें आत्मविश्वास लाएगा और उनके व्यक्तिगत व पारिवारिक वित्तीय फैसलों को लेने में मदद करेगा।”
एक जवाबदेह ग्राहक ऋण प्रदाता के तौर पर होम क्रेडिट इंडिया का विश्वास है कि मूलभूत वित्तीय जानकारी लोगों के वैयक्तिक वित्तीय मामलों के प्रबंधन व पहले से जानकारी शुदा फैसलों के लिए आवश्यक है। वित्तीय साक्षरता वर्कशाप सक्षम के पाठ्यक्रम में बजटिंग, सेविंग्स, क्रेडिट वर्दीनेस और इन्वेस्टमेंट प्लानिंग जैसे विषयों को कवर किया गया।
परियोजना के संपन्न होने पर बोलते हुए, सीईओ, आईडीएफ, डा. नारायण अय्यर ने कहा, “देश में वित्तीय समावेशन पर सरकार के फोकस के चलते विशेष तौर पर वित्तीय साक्षरता आज के समय की आवश्यकता बन चुका है। हाशिए की महिलाओं को लक्ष्य बनाते हुए हमने समाज के सबसे निचले स्तर से वित्तीय शिक्षा की शुरुआत की है जो कि इसकी महत्ता को समाज के बड़े हिस्से तक फैलाने के लिए एक मजबूत नींव रखेगा। हमारे साक्षरता वर्कशाप्स में शामिल होने वाले लाभार्थियों ने शानदार प्रतिक्रिया देते हुए इस तरह के प्रशिक्षण को नियमित रुप से कराने और अधिक प्रभावी बनाने के लिए परिवार के पुरुष सदस्यों को भी शामिल करने का अनुरोध किया है। आईडीएफ दशकों से शिक्षा एवं कौशल प्रशिक्षण के क्षेत्र में काम कर रहा है और देश में वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित के लिए होम क्रेडिट के प्रेरित करने के चलते हम इस अभियान को और आगे ले जाने में सफल होंगे।”
आरबीआईऔर अन्य वित्तीय नियामकों द्वारा प्रवर्तित नैशनल सेंटर फार फाइनैंशिल एजुकेशन (एनसीईएफ) के अनुसार, भारत की कुल आबादी का लगभग 80 फीसदी साक्षर है हालांकि वयस्क आबादी का केवल 27 फीसदी ही वित्तीय साक्षर है जबकि महिलाओं में यह संख्या केवल 21 फीसदी है।
वित्तीय साक्षरता पहल के एक अंग के तौर पर होम क्रेडिट इंडिया ने अपने इन-हाउस कार्यक्रम `पैसे की पाठशाला’, माइक्रोसाइट, ब्लाग्स और सोशल मीडिया अभियानों से 30 लाख से ज्यादा लोगों को जोड़ा है। वित्तीय समावेशन के पोषण और सभी तक आसान पहुंच बनाने के लिए होम क्रेडिट का सदैव तकनीकी की शक्ति व डिजिटल नवोन्मेषों में विश्वास रहा है।
]]>· वित्त वर्ष 2022 के लिए अनुमान निर्धारित: : पूर्व असाधारण स्थिति में एबिटा के 900 मिलियन यूरो से 950 मिलियन यूरो के बीच रहने की उम्मीद
नागदा – ऊर्जा और कच्चे माल की लागत में निरंतर वृद्धि के साथ एक चुनौतीपूर्ण वातावरण में, विशेष रसायन कंपनी लैंक्सेस ने 2022 की तीसरी तिमाही के लिए अच्छे परिणाम दिए हैं। बिक्री में 38.2 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई। पिछले वर्ष की समान अवधि में यह 1.581 बिलियन यूरो था, जो अब बढ़कर 2.185 बिलियन यूरो हो गया। वहीं पिछले साल के 229 मिलियन के मुकाबले 4.8 फीसदी की वृद्धि के साथ एबिटा (पूर्व असाधारण स्थिति) बढ़कर 240 मिलियन यूरो हो गया।
लैंक्सेस एजी के प्रबंधन बोर्ड के चेयरमैन मैथ्यू जैशर्ट ने कहा, “अच्छे आंकड़े बताते हैं कि हमारी रणनीति हमें सही दिशा में ले जा रही है। चुनौतीपूर्ण समय में, हम पहले की तुलना में बहुत अधिक स्थिर हैं और इसका श्रेय कम चक्रीय विशेषता रसायनों पर ध्यान केंद्रित करना जाता है। वर्ष के मध्य में, हमने आईएफएफ से माइक्रोबियल कंट्रोल व्यवसाय प्राप्त करके अपने उपभोक्ता संरक्षण खंड को फिर से मजबूत किया, जिसके नतीजे पिछली तिमाही में हासिल हो चुके हैं।”
लैंक्सेस ने पूरे वित्त वर्ष 2022 के लिए अपना अनुमान निर्धारित किया है। समूह को 900 मिलियन से 950 मिलियन यूरो के बीच की शुद्ध आय की उम्मीद है, जो इस प्रकार 815 मिलियन यूरो के समायोजित पूर्व-वर्ष के स्तर से काफी अधिक होगी। पहले, समूह ने 900 मिलियन यूरो और 1 बिलियन यूरो के बीच एबिटा (पूर्व असाधारण स्थिति) रहने का अनुमान लगाया था।
तीसरी तिमाही में जारी परिचालन से शुद्ध आय 84 मिलियन यूरो रही, जबकि पूर्व-वर्ष की अवधि में यह 40 मिलियन यूरो थी।
एडिटिव्स व्यवसायों के अलावा, उपभोक्ता संरक्षण खंड में विकास, जिसे समूह ने हाल के वर्षों में रणनीतिक रूप से बनाया है, विशेष रूप से सकारात्मक रहा। यू.एस. कॉर्पोरेशन इंटरनेशनल फ्लेवर्स एंड फ्रैग्रेंस (आईएफएफ) से 1 जुलाई 2022 को अधिग्रहित माइक्रोबियल कंट्रोल बिजनेस ने इस सेगमेंट की बेहतरीन आय में योगदान दिया। साथ ही 2021 में अधिग्रहित एमराल्ड कलामा केमिकल के कारोबार ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। लैंक्सेस ने ऊर्जा और कच्चे माल की कीमतों में हुई वृद्धि को उच्च बिक्री मूल्य के माध्यम से ग्राहकों को हस्तांतरित कर दिया है। विनिमय दरों का भी सभी क्षेत्रों में आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा, जबकि निर्माण जैसे कुछ ग्राहक उद्योगों में मांग कमजोर हुई। पूर्व असाधारण स्थिति एबिटा मार्जिन तीसरी तिमाही में घटकर 11.0 प्रतिशत हो गया, जो पूर्व-वर्ष की तिमाही में 14.5 प्रतिशत था।
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पीटीएसई के अपर निदेशक एवं प्रमुख बलराम खोट और पीटीएसई- ऑक्युपेशनल सेफ्टी, एक्जैक्ट, रिस्पॉन्सिबल केयर एवं ट्रेड कॉम्प्लायंस के वरिष्ठ प्रबंधक भरत मीसाला ने 2 नवंबर 2022 को नई दिल्ली में हुए एक आयोजन में लैंक्सेस इंडिया की ओर से ‘डिजिटेक फ्रंट रनर ऑफ द ईयर’ पुरस्कार प्राप्त किया।
यह पुरस्कार कारोबारी प्रक्रियाओं के डिजिटलाइजेशन में कंपनी के प्रयासों, डिजिटल क्षमताओं और विभिन्न क्षेत्रों में इस्तेमाल हुए डिजिटल टूल्स/संसाधनों के लिये है। जैसे कि महत्व श्रृंखला में कार्यान्वयन के माध्यम से प्रक्रिया में सुधार, संपदा की विश्वसनीयता, सुरक्षा, स्थायित्वपूर्णता और लागत में बचत।
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